Math, asked by bangy, 11 months ago

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Prasang of the chapter swarg bana sakte hain​

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Answered by khushi2135
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hey mate..!!
your answer goes like this..
"prasang of the chapter swarg bana sakte hain.. "
प्रस्तुत अंश दिनकर जी की प्रसिद्ध रचना ‘कुरुक्षेत्र’ से लिया गया है। महाभारत युद्ध के उपरांत धर्मराज युधिष्ठिर भीष्म पितामह के पास जाते हैं। वहाँ भीष्म पितामह उन्हें उपदेश देते हैं। यह भीष्म पितामह का युधिष्ठिर को दिया गया अंतिम उपदेश है। 40 के दशक में लिखी गई इस कविता के माध्यम से कवि भारत देश की सामाजिक दशा, उसके विकास में उपस्थित बाधाओं और उसमें परिवर्तन कर उसे स्वर्ग समान बनाने की बात करते हैं।

 पितामह युधिष्ठिर को समझाते हुए कहते हैं कि यह भूमि किसी भी व्यक्ति-विशेष की खरीदी हुई दासी नहीं है। अर्थात उसकी निजी संपत्ति नहीं है। इस धरती पर रहने वाले हरेक मनुष्य का इस पर समान अधिकार है। सभी मनुष्यों को जीवन जीने हेतु प्राकृतिक संसाधनों की आवश्यकता होती है, किंतु कुछ शक्तिशाली लोग उनको उन सामान्य जनों तक पहुँचने से रोक रहे हैं। इस प्रकार वे मानवता के विकास में बाधक बने हुए हैं। जब तक सभी मनुष्यों में सुख का न्यायपूर्ण तरीके से समान वितरण नहीं होता है तब तक इस धरती पर शांति स्थापित नहीं हो सकती। तब तक संघर्ष चलता रहेगा। भीष्म पितामह के माध्यम से कवि कहते हैं कि मनुष्य निजी शंकाओं से ग्रस्त, स्वार्थी होकर भोग में लिप्त हो गया है, वह केवल अपने संचय में लगा हुआ है। कवि कहते हैं कि ईश्वर ने हमारी धरती पर हमारी आवश्कता से कहीं अधिक सुख बिखेर रखा है। सभी मनुष्य मिलकर उसका समान भाव से भोग कर सकते हैं। स्वार्थ को त्याग, सुख समृद्धि पर सबका अदिकार समझते हुए, उसे सभी को समान भाव से बाँटकर हम इस धरती को पल भार में स्वर्ग बना सकते हैं।
Answered by ʙʀᴀɪɴʟʏᴡɪᴛᴄh
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प्रस्तुत पंक्तियों में पितामह भीष्म युधिष्ठिर कहते हैं कि हर व्यक्ति को समान रूप से प्रकाश और वायु चाहिए। उसके जीवन का विकास बाधारहित होना चाहिए। इसके अलावा उसका जीवन भय से मुक्त होना चाहिए। ... भावार्थ- भीष्म पितामह युधिष्ठिर से कहते हैं कि इस धरती को स्वर्ग बनाने के लिए अनेक बाधाएँ खड़ी हैं।

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