Hindi, asked by manasagqkaf, 1 year ago

only on one in 80 -100 words

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Answered by RiskyJaaat
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हमारे देश में साधु-संतों को बहुत सम्मान दिया जाता है, लोग अंधभक्ति करते हैं मगर अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहे जाने वाले व्यापारी व व्यवसायी वर्ग बड़े उपेक्षित से हैं । किसान और मजदूर जो कि अपने खून को पसीना बनाने में नहीं हिचकते, उन्हें जरा भी आदर प्राप्त नहीं है । ये लोग अपनी भूख भी ठीक ढंग से नहीं मिटा पाते । मैंने अपने देश का जो सपना सँजोया है उसमें व्यापारी, किसान व मजदूर बहुत खुशहाली में होंगे ।

भारत में एक महान् राष्ट्र बनने की पूरी क्षमता है । इसके लिए प्रत्येक नागरिक को अपनी निजी जिम्मेदारी अवश्य कबूल करनी होगी । मानव संसाधनों और प्राकृतिक संसाधनों का एक सेतु बनाकर इसे विकास के साथ जोड़ना होगा । आजादी के बाद से लेकर अब तक केवल शहरी क्षेत्र के विकास पर ध्यान दिया गया है लेकिन गाँव जब तक उपेक्षित रहेंगे भारत का कल्याण नहीं हो सकता ।

गाँवों में सिंचाई की सुविधा का होना सबसे जरूरी है ताकि किसान वर्षा की अनिश्चितता से मुक्त हो सकें । शहरों से लेकर गाँवों तक जोड़ने वाली बारहमासी सड़कों, बिजली तथा टेलीफोन सेवा की उपलब्धता हर जगह होनी चाहिए । गाँवों में स्कूल तथा स्वास्थ्य सेवा का ऐसा संजाल होना चाहिए जिससे लोगों को अपने बच्चों की शिक्षा तथा सबके स्वास्थ्य को लेकर एक प्रकार की निश्चिंतता हो ।

ग्रामवासी हर छोटे काम के लिए शहरों का रुख करने के लिए मजबूर न हों, इसका पूरा-पूरा ध्यान रखा जाना चाहिऐ । कृषि विशेषज्ञ गाँव-गाँव घूमकर खेती के पूरे तंत्र की जाँच करें, किसानों को उचित मशवरा दें यह स्थिति ही आदर्श है न कि किसान अपनी छोटी-छोटी समस्याओं के लिए अंचल तथा जिला कार्यालयों का चक्कर लगाएँ।

पशुओं की बीमारियों का इलाज पशु चिकित्सक गाँव में जाकर करें, इसकी व्यवस्था भी आवश्यक है । ये सभी बुनियादी कार्य थे मगर आजादी के बाद से लेकर अब तक इसके बारे में कुछ नहीं किया जा सका । मैं अपने सपने में जो भारत देखता हूँ उसमें ग्रामीण विकास के ये सभी पहलू अहम् हैं ।

यदि हम अपने पड़ोसी देश चीन की ओर देखें तो यह आभास होता है कि यह देश एक गैर-लोकतांत्रिक देश होते हुए भी हमसे काफी आगे निकल चुका है । हमारे देश में विकास के मार्ग में नौकरशाही और लालफीताशाही के रूप में दो बड़े अवरोधक खड़े हैं । हमारी राजनीतिक व्यवस्था किसी दीर्घनीति और दूरदृष्टि के अभाव में इन अवरोधों को हटाने में असफल रही है । ऊपर से नीचे तक का सरकारी तंत्र न केवल भ्रष्टाचार में लिप्त है अपितु अक्षम भी है ।

जनता की छोटी-छोटी समस्याएँ भी नहीं सुलझ पाती हैं क्योंकि हर कोई निजता की भावना से काम कर रहा है । इस संबंध में मेरा दृष्टिकोण बिलकुल स्पष्ट है कि जन जागृति और स्वतंत्रता आंदोलन के जज्बे को पुन: उभारने की आवश्यकता है । जब व्यक्ति के मापदंड उच्च होंगे तब वह निश्चित ही अपने परिवेश की जकड़नों को तोड़ने के लिए उद्‌यत होगा । लोगों को अपने प्रति ईमानदार होना ही चाहिए, इसी में भारत के गौरव की पुनर्स्थापना का मंत्र छिपा है ।

‘सारे जहाँ से अच्छा हिंदोस्ताँ हमारा’ यह प्रेरणादायी उद्‌बोधन एक हकीकत बने, एक सच्ची बात हो जाए, उसी समय हम अधिक गौरव का अनुभव कर सकेंगे । भारत कभी जगतगुरु था, यह सत्य है मगर आज हम क्या हैं, आज हम दुनिया में कहाँ खड़े हैं, यह अधिक महत्वपूर्ण है । हमारा पुराना गौरव हमारे अंदर प्रेरणा भर सकता है मगर केवल सद्ईच्छाएँ ही भारत को खुशहाल बनाने के लिए पर्याप्त नहीं हैं ।

कुल मिलाकर मेरे सपनों का भारत एक सुखी-संपन्न, शिक्षित, कर्मनिष्ठ और आत्मनिर्भर भारत है । जहाँ के लोग अपनी मर्यादाओं का पालन करते हों, उनमें विश्व बंधुत्व की भावना हो, वे दूसरे धर्मवालों का समान रूप से आदर करना जानते हों, शोषण और अत्याचार को जो बर्दाश्त न करें, लोगों में दया और परोपकार की भावना हो तथा प्रेममय जीवन जिनका लक्ष्य हो ,मैं ऐसे भारत की कल्पना करता हूँ ।



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@riskyjaaat

manasagqkaf: hiii brother in which topic you written
RiskyJaaat: hamara desh Bharat
RiskyJaaat: please subscribe my channel
manasagqkaf: thanks
manasagqkaf: ok
RiskyJaaat: please subscribe
Answered by abcxyz12
3
hayy mate here your answer ✔️ ✔️
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2) Jay Jawan Jay kisan


सन् १९६५ की बात है । उत्तर-पश्चिम सीमा पर स्थित पड़ोसी राष्ट्र पाकिस्तान ने हमारे देश पर चढ़ाई कर दी । उस समय लाल बहादुर शास्त्री हमोर देश के प्रधानमंत्री थे । नाटा कद और दुबला-पतला शरीर था उनका ।

भारतीय रक्त के प्यासे पाकिस्तानी सैनिकों ने समझा था कि उन्हें लीलने में देर न लगेगी, किंतु वे तो लोहे के चने निकले । उनकी नस-नस में देश-प्रेम भरा हुआ था । अपने देश पर आए मंकट की भीषणता का अनुभव कर उनके देश-प्रेम में उबाल आ गया ।

वे साहस के पुतले वन गए अपने उस छोटे शरीर से उन्होंने सिंह की-सी गर्जना की और पाकिस्तानी सैनिकों को ललकारा । ऐसे संकट काल में राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ करने की आवश्यकना थी । देश के किसी कोने में कोई नया उपद्रव न खड़ा हो जाए, इस पर ध्यान रखना आवश्यक था । इन प्राथमिकताओं को शास्त्रीजी ने महसूस किया ।

देश में भावनात्मक एकता स्थापित करने के लिए उन्होंने नारा लगाया- ‘जय जवान, जय किसान ।’ इस नारे ने जादू का सा असर किया भारतीय सैनिकों पर । इसका इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि उन्होंने अपनी जान की परवाह न कर पाकिस्तानी सैनिकों के दाँत खट्‌टे कर दिए और उनके गर्व को मिट्‌टी में मिला दिया ।

इतना ही नहीं, भारतीय हिंदू सैनिकों ने ही नहीं, उनके साथ भारतीय मुसलिम सैनिकों ने भी स्वदेश की रक्षा के लिए पाकिस्तानियों का डटकर सामना किया । इससे पाकिस्तान के हौसले पस्त हो गए । उसे विवश होकर अपनी रक्षा के लिए संधि करनी पड़ी । यह चमत्कार था ‘जय जवान, जय किसान’ नारे का । आज शास्त्रीजी हमारे बीच नहीं हैं, पर उनका दिया हुआ यह नारा हमेशा हमारा पथ-प्रदर्शन करता रहेगा ।

‘जय जवान, जय किसान’ हमारी विजय का नारा है । यह नारा राष्ट्रीय एकता का मूलमंत्र है । हमारे लिए इसका बहुत महत्त्व है- एक तो सैनिक दृष्टि से और दूसरा आर्थिक दृष्टि से । शास्त्रीजी ने जिस समय यह नारा दिया, उस समय उनके मस्तिष्क में एक ओर तो देश की सैनिक शक्ति में वृद्धि करने का प्रश्न था और दूसरी ओर देश की आर्थिक स्थिति को समुन्नत करने का ।

शास्त्रीजी ने इसीलिए ‘जवान’ और ‘किसान’ की विजय और सफलता का एक साथ उद्‌घोष किया । उन्होंने देश की दो प्रमुख समस्याओं पर अपनी दृष्टि केंद्रित की । अपने देशव्यापी अनुभव से उन्होंने महसूस किया कि यदि भारत सैनिक दृष्टि से सशक्त हो जाए और आर्थिक दृष्टि से स्वयं अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति में समर्थ हो जाए, तो सबल-से-सबल राष्ट्र भी उसका बाल बाँका नहीं कर सकता ।

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❤️⭐I hope you mark as brainlist answer⭐❤️✨✨✨

manasagqkaf: hii brother in which topic you written
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