Othello English to Hindi
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ऑथेलो’ एक दुःखान्त नाटक है। शेक्सपियर ने इसे सन् 1601 से 1608 के बीच लिखा था। यह समय शेक्सपियर के नाट्य-साहित्य के निर्माण-काल में तीसरा काल माना जाता है जबकि उसके अपने प्रसिद्ध दुःखान्त नाटक लिखे थे। इस काल के नाटक प्रायः निराशा से भरे हैं।
‘ऑथेलो’ की कथा सम्भवतः शेक्सपियर से पहले भी प्रचलित थी। दरबारी नाटक-मण्डली ने राजा जेम्स प्रथम के समय में पहली नवम्बर 1604 ई. को सभा में ‘वेनिस का मूर’ नामक नाटक खेला था। शेक्सपियर ने भी ‘ऑथेलो’ नाटक का दूसरा नाम-‘वेनिस का मूर’ ही रखा है। सम्भवतः यह शेक्सपियर का ही नाटक रहा हो। कथा का मूल स्रोत सम्भवतः 1566 ई. में प्रकाशित जिराल्डी चिन्थियो की ‘हिकैतोमिथी’ पुस्तक से लिखा गया है। अंग्रेज़ी साहित्य में इस कथा का शेक्सपियर के अतिरिक्त कहीं विवरण प्राप्त नहीं होता। शेक्सपियर की कथा और चिन्थिओ की कथा में काफी अन्तर है।
इस कथा में मेरी राय में खलनायक इआगो का चित्रण इतना सबल है कि देखते ही बनता है। प्रायः प्रत्येक पात्र अपना सजीव चित्र छोड़ जाता है। विश्व साहित्य में ‘ऑथेलो’ एक महान रचना है क्योंकि इसके प्रत्येक पृष्ठ में मानव-जीवन की उन गहराइयों का वर्णन मिलता है, जो सदैव स्मृति पर खिंचकर रह जाती हैं।
मैंने अपने अनुवाद को जहाँ तक हुआ है सहज बनाने की चेष्ठा की है। कुछ बातें हमें याद रखनी चाहिए कि शेक्सपियर के समय में स्त्रियों का अभिनय लड़के करते थे। दूसरे, उसके समय में नाटकों में पर्दों का प्रयोग नहीं होता था, दर्शकों को काफी कल्पना करनी पड़ती थी। इन बातों के बावजूद शेक्सपियर की कलम का जादू सिर पर चढ़कर बोलता है। यदि आपको इस नाटक में कोई कमी लगे तो उसे शेक्सपियर पर न मढ़कर मेरे अनुवाद पर मढ़िए, मैं आभारी होऊँगा।
‘ऑथेलो’ की कथा सम्भवतः शेक्सपियर से पहले भी प्रचलित थी। दरबारी नाटक-मण्डली ने राजा जेम्स प्रथम के समय में पहली नवम्बर 1604 ई. को सभा में ‘वेनिस का मूर’ नामक नाटक खेला था। शेक्सपियर ने भी ‘ऑथेलो’ नाटक का दूसरा नाम-‘वेनिस का मूर’ ही रखा है। सम्भवतः यह शेक्सपियर का ही नाटक रहा हो। कथा का मूल स्रोत सम्भवतः 1566 ई. में प्रकाशित जिराल्डी चिन्थियो की ‘हिकैतोमिथी’ पुस्तक से लिखा गया है। अंग्रेज़ी साहित्य में इस कथा का शेक्सपियर के अतिरिक्त कहीं विवरण प्राप्त नहीं होता। शेक्सपियर की कथा और चिन्थिओ की कथा में काफी अन्तर है।
इस कथा में मेरी राय में खलनायक इआगो का चित्रण इतना सबल है कि देखते ही बनता है। प्रायः प्रत्येक पात्र अपना सजीव चित्र छोड़ जाता है। विश्व साहित्य में ‘ऑथेलो’ एक महान रचना है क्योंकि इसके प्रत्येक पृष्ठ में मानव-जीवन की उन गहराइयों का वर्णन मिलता है, जो सदैव स्मृति पर खिंचकर रह जाती हैं।
मैंने अपने अनुवाद को जहाँ तक हुआ है सहज बनाने की चेष्ठा की है। कुछ बातें हमें याद रखनी चाहिए कि शेक्सपियर के समय में स्त्रियों का अभिनय लड़के करते थे। दूसरे, उसके समय में नाटकों में पर्दों का प्रयोग नहीं होता था, दर्शकों को काफी कल्पना करनी पड़ती थी। इन बातों के बावजूद शेक्सपियर की कलम का जादू सिर पर चढ़कर बोलता है। यदि आपको इस नाटक में कोई कमी लगे तो उसे शेक्सपियर पर न मढ़कर मेरे अनुवाद पर मढ़िए, मैं आभारी होऊँगा।
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‘ऑथेलो’ एक दुःखान्त नाटक है। शेक्सपियर ने इसे सन् 1601 से 1608 के बीच लिखा था। यह समय शेक्सपियर के नाट्य-साहित्य के निर्माण-काल में तीसरा काल माना जाता है जबकि उसके अपने प्रसिद्ध दुःखान्त नाटक लिखे थे। इस काल के नाटक प्रायः निराशा से भरे हैं।
‘ऑथेलो’ की कथा सम्भवतः शेक्सपियर से पहले भी प्रचलित थी। दरबारी नाटक-मण्डली ने राजा जेम्स प्रथम के समय में पहली नवम्बर 1604 ई. को सभा में ‘वेनिस का मूर’ नामक नाटक खेला था। शेक्सपियर ने भी ‘ऑथेलो’ नाटक का दूसरा नाम-‘वेनिस का मूर’ ही रखा है। सम्भवतः यह शेक्सपियर का ही नाटक रहा हो। कथा का मूल स्रोत सम्भवतः 1566 ई. में प्रकाशित जिराल्डी चिन्थियो की ‘हिकैतोमिथी’ पुस्तक से लिखा गया है। अंग्रेज़ी साहित्य में इस कथा का शेक्सपियर के अतिरिक्त कहीं विवरण प्राप्त नहीं होता। शेक्सपियर की कथा और चिन्थिओ की कथा में काफी अन्तर है।
इस कथा में मेरी राय में खलनायक इआगो का चित्रण इतना सबल है कि देखते ही बनता है। प्रायः प्रत्येक पात्र अपना सजीव चित्र छोड़ जाता है। विश्व साहित्य में ‘ऑथेलो’ एक महान रचना है क्योंकि इसके प्रत्येक पृष्ठ में मानव-जीवन की उन गहराइयों का वर्णन मिलता है, जो सदैव स्मृति पर खिंचकर रह जाती हैं।
मैंने अपने अनुवाद को जहाँ तक हुआ है सहज बनाने की चेष्ठा की है। कुछ बातें हमें याद रखनी चाहिए कि शेक्सपियर के समय में स्त्रियों का अभिनय लड़के करते थे। दूसरे, उसके समय में नाटकों में पर्दों का प्रयोग नहीं होता था, दर्शकों को काफी कल्पना करनी पड़ती थी। इन बातों के बावजूद शेक्सपियर की कलम का जादू सिर पर चढ़कर बोलता है। यदि आपको इस नाटक में कोई कमी लगे तो उसे शेक्सपियर पर न मढ़कर मेरे अनुवाद पर मढ़िए, मैं आभारी होऊँगी।
धन्यवाद!!
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