ओढ़ि पितंबर लै लकुटी बन गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी। भावतो वोहि मेरो रसखानि सों तेरे कहे सब स्वांग करेंगी। या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरान धरौंगी। ओढ़ि पितंबर लै लकुटी बन गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी।। भावतो वोहि मेरोरसखानि सों तेरे कहे सब स्वांग करोंगी। या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी।
अंतिम पंकित में कौन-सा समास है
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ओढ़ि पितंबर लै लकुटी बन गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी। भावतो वोहि मेरो रसखानि सों तेरे कहे सब स्वांग करेंगी। या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरान धरौंगी। ओढ़ि पितंबर लै लकुटी बन गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी।। भावतो वोहि मेरोरसखानि सों तेरे कहे सब स्वांग करोंगी। या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी।
अंतिम पंकित में कौन-सा समास है
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