औजगुण की प्रधानता और उत्साह का अदभुत प्रदर्शन है।
(२) बरणागीत
(स) दिनेदी युग (द) शुक्लोतर युग
(दो दानवीर
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ओज का शाब्दिक अर्थ है-तेज, प्रताप या दीप्ति । जिस काव्य को पढने या सुनने से ह्रदय में ओज, उमंग और उत्साह का संचार होता है, उसे ओज गुण प्रधान काव्य कहा जाता हैं । यह गुण मुख्य रूप से वीर, वीभत्स, रौद्र और भयानक रस में पाया जाता है। (अ) इस प्रकार के काव्य में कठोर संयुक्ताक्षर वाले वर्णों का प्रयोग होता है।
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