औपनिवेशिक भारत मे विभिन्न भूमि व्यवस्था का वणरन
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अंग्रेजो ने भारत के परम्परागत कृषि ढांचे को नष्ट कर अपने फायदे के लिये भूराजस्व निर्धारण और संग्रहण के नये तरीके लागू किये।
वारेन हेस्टिग्ज ने 1772 में बंगाल में द्वैध शासन व्यवस्था को समाप्त कर फार्मिग सिस्टम की शुरुआत की।
क्लाइव के समय इसका बंदोबस्त वार्षिक होता था हैस्टिग्ज ने इसे 5 साल कर दिया।
लार्ड कार्नवालिस ने दस साला बंदोबस्त लागू किया 1793 में इसे स्थायी बन्दोबस्त में परिवर्तित कर दिया।
स्थायी बन्दोबस्त :- में जमीदार भूस्वामी था। उसे लगान का ग्यारहवां हिस्सा अपने पास रखकर बाकी कम्पनी को जमा करना होता था।
रैयतबाड़ी बंदोबस्त :- थामस मुनरों और कैप्टन रीड को इसका जन्मदाता माना जाता है। यह सर्वप्रथम तमिलनाडु के बारामहल में लागू की गई।
बाद में यह मद्रास बम्बई असम कुर्ग आदि हिस्सों में लागू की गई यह कुल ब्रिटिश भारत के 51 प्रतिशत भाग में थी। इसमें कृषक भूस्वामी होता था और लगान का 55 प्रतिशत से 33 प्रतिशत लगान कम्पनी को अदा करना होता था।
महालवाड़ी बदोबस्त - इसमें भूराजस्व का निर्धारण महाल या ग्राम के उत्पादन के आधार पर होता था। यह ब्रिटिश भारत के 30 प्रतिशत हिस्से पर लागू थी। इसमें अवध आगरा मध्य प्रान्त और पंजाब के हिस्से शामिल थे।
इन व्यवस्थाओं में लगान की वास्तविक दर कुछ ज्यादा ही थी। इस कारण किसान महाजनों के कर्ज में दब गए। और उनकी स्थिति दयनीय हो गई।
Ryotwari System was presented by Thomas Munro in 1820. Real regions of presentation incorporate Madras, Bombay, and parts of Assam and Coorgh territories of British India.
In Ryotwari System the proprietorship rights were given over to the workers. English Government gathered duties straightforwardly from the workers. The income rates of Ryotwari System were half where the terrains were dry and 60% in flooded land.