ढ़ और ड़ किसके उद्धरण है
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दो व्यंजन हैं हिन्दी में - 'ड' और 'ढ'।
दोनों 'टवर्ग' से हैं , दोनों को बोलते समय जीभ आगे मूर्धा से टकराती है। ऊपरी जबड़े के दाँतों के पीछे का हड्डीदार हिस्सा मूर्धा कहलाता है। इसे अँगरेज़ी में हार्ड पैलेट कहा जाता है।
अब ज़रा इन्हें बोलकर देखिए - 'ड़' और 'ढ़'। 'ड' और 'ढ' की तुलना में क्या अन्तर महसूस किया आपने ? मूर्धा को छूकर जीभ नीचे को गिरी न ! 'ड' और 'ढ' की तुलना में 'ड़' और 'ढ़' उत्क्षिप्त वर्ण कहे जाते हैं। इन अक्षरों के नीचे के नुक़तों ने यह असर पैदा किया है।
'ड़' और 'ढ़' संस्कृत में नहीं हैं , ये हिन्दी के अपने व्यंजन हैं। इन्हें द्विगुण व्यंजन भी कहा जाता है।
संस्कृत में 'पीडित' है , हिन्दी में 'पीड़ित', संस्कृत में 'जडता' चलता है , हिन्दी में 'जड़ता', संस्कृत में 'प्रगाढ' मिलेगा , हिन्दी में 'प्रगाढ़'।
एक ध्यान देने योग्य बात और। 'ड़' और 'ढ़' से हिन्दी में कोई शब्द शुरू नहीं होता , ये अक्षर शब्दों के बीच या अन्त में ही आ सकते हैं। तद्भव शब्दों में बहुधा इनका प्रयोग होता है। 'पड़वा' , 'बाड़ा' , 'पेड़ा' , 'आड़ा' , 'पेड़' , 'ताड़' , 'साँड़' , 'जाड़ा' , 'कूड़ा' , 'सड़ना' , 'काढ़ा' , 'आढ़त' , 'ढाढ़स' , 'बूढ़ा' , 'पढ़ना' - जैसे शब्दों में इनका प्रयोग देखिए।
हिन्दी का सम्मान कीजिए। इसमें एक नुक़ता , एक मात्रा भी अकारण नहीं है। इसमें ग्यारह मूल स्वर हैं और तैंतीस मूल व्यंजन। इस तरह से कुल संख्या चवालीस पहुँचती है। 'अं' और 'अः' मूल स्वर नहीं हैं , जबकि 'क्ष', 'त्र' और 'ज्ञ' मूल व्यंजन न होकर संयुक्त व्यंजन हैं।