और विरामदायिनी अपनी
संध्या को दे जाता है।
शून्य श्याम तनु जिसके उसका
नया रूप छलकाता है।।
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है बिखेर देती वसुंधरा, मोती, सबके सोने पर,
रवि बटोर लेता है उनको, सदा सवेरा होने पर।
और विरामदायिनी अपनी, संध्या को दे जाता है,
शून्य श्याम-तनु जिससे उसका, नया रूप झलकाता है॥
सबके सोने के पश्चात यह धरती मोती (ओस रुपी) बिखेर देती है । और सुबह होने पर सूर्य प्रकट होने पर ओस की बूँदे ऐसे गायब हो जाती हैं जैसे सूर्य ने मोती बटोर लिए हों। और जब सूर्य अस्त होता है तो शाम आती है जो कि आराम प्रदान करती है। संध्या (या रात्री पूर्व का समय) की काया का रंग श्याम (काला) होता है , जिससे उसका एक नया ही रूप प्रकट होता है।
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