औद्योगिक क्रांति में लोहा इस्पात उद्योग का क्या योगदान था
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वे उद्योग जिनमें खनिजों को कच्चे माल के रूप में उपयोग में लाया जाता है खनिज आधारित उद्योग कहलाते हैं। इन उद्योगों में लोहा एवं इस्पात उद्योग सबसे महत्त्वपूर्ण है। इन्जीनियरिंग, सीमेन्ट, रासायनिक एवं उर्वरक उद्योग भी खनिज आधारित उद्योग के उदाहरण हैं।
Explanation:
लोहा एवं इस्पात उद्योग
यह एक आधारभूत उद्योग हैं क्योंकि इसके उत्पाद बहुत से उद्योगों के लिये आवश्यक कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त होते हैं।
भारत में यद्यपि लौह इस्पात के निर्माण की औद्योगिक क्रियाएँ बहुत पुराने समय से चली आ रही हैं किन्तु आधुनिक लौह इस्पात उद्योग की शुरुआत 1817 में बंगाल के कुल्टी नामक स्थान पर बंगाल लोहा एवं इस्पात कारखाने की स्थापना से हुई। टाटा लोहा एवं इस्पात कम्पनी की स्थापना जमशेदपुर में 1907 में हुई। इसके पश्चात भारतीय लोहा एवं इस्पात संयंत्र की स्थापना 1919 में बर्नपुर में हुई। इन तीनों संयंत्रों की स्थापना निजी क्षेत्र के अंतर्गत हुई थी। सार्वजनिक क्षेत्र के अंतर्गत प्रथम लोहा तथा इस्पात का संयंत्र जिसे अब ''विश्वेसरैया लोहा एवं इस्पात कम्पनी'' के नाम से जाना जाता है, की स्थापना भद्रावती में सन 1923 में हुई थी।
स्वतंत्रता के पश्चात लोहा एवं इस्पात उद्योग में तीव्रता से प्रगति हुई। सभी वर्तमान इकाइयों की उत्पादन क्षमता में वृद्धि हुई। तीन नए एकीकृत संयंत्रों की स्थापना क्रमशः राउरकेला (उड़ीसा), भिलाई (छत्तीसगढ़) तथा दुर्गापुर (पश्चिम बंगाल) में की गई। बोकारो इस्पात संयंत्र की स्थापना सार्वजनिक क्षेत्र के अन्तर्गत सन 1964 में की गई। बोकारो तथा भिलाई स्थित संयंत्रों की स्थापना भूतपूर्व सोवियत संघ के सहयोग से की गई। इसी प्रकार दुर्गापुर लोहा एवं इस्पात संयंत्र की स्थापना यूनाइटेड किंगडम के सहयोग से तथा राऊरकेला संयंत्र जर्मनी के सहयोग से स्थापित किए गए। इसके पश्चात विशाखापट्टनम और सलेम संयंत्रों की स्थापना हुई। स्वतंत्रता के समय भारत सीमित मात्र में कच्चे लोहे तथा इस्पात का निर्माण करता था। सन 1950-51 में भारत में इस्पात का उत्पादन केवल 10 लाख टन था जो 1998-99 में बढ़ते-बढ़ते 238 लाख टन तक पहुँच गया।
भारत के प्रमुख लौह तथा इस्पात संयंत्र झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक तथा तमिलनाडु राज्यों में अवस्थित हैं। इसके अलावा भारत में 200 लघु इस्पात संयंत्र हैं जिनकी क्षमता 62 लाख टन प्रति वर्ष है। लघु इस्पात संयंत्रों में इस्पात बनाने के लिये स्क्रेप या स्पॉन्ज लोहे का प्रयोग किया जाता है। ये सारी छोटी इकाइयाँ देश में लोहा तथा इस्पात उद्योग के महत्त्वपूर्ण घटक हैं।
लोहा तथा इस्पात उद्योग के अधिकांश संयंत्र भारत के छोटा नागपुर पठार पर अथवा उसके आस-पास इसलिये स्थापित हुए हैं, क्योंकि इसी क्षेत्र में लौह अयस्क, कोयला, मैंगनीज, चूने का पत्थर, डोलोमाइट जैसे महत्त्वपूर्ण खनिजों के विपुल निक्षेप मिलते हैं।