औद्योगिक और रासायनिक दुर्घटना के कारण क्या होते हैं इससे कैसे बचा जा सकता है
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विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक रासायनिक दुर्घटनाएँ रसायनों का अनियन्त्रित बहाव हैं, जो वर्तमान में घातक हैं अथवा भविष्य में घातक हो सकते हैं। ऐसी घटनाएँ अकस्मात या फिर जानकारी के बाद भी हो सकती हैं। देश में 1984 की भोपाल गैस त्रासदी इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। यूनियन कार्बाइड कम्पनी की लापरवाही के परिणामस्वरूप विषैली गैस मिथाइल आइसोसाइनाइड के रिसाव ने देखते ही देखते 2500 से अधिक निर्दोष जिन्दगियों को लील लिया। इस घटना की भयावहता के जख्म आज भी भोपाल की आबोहवा में तैर रहे हैं।
रासायनिक दुर्घटनाएँ न केवल मनुष्यों को, बल्कि इनके साथ प्रकृति व सम्पत्ति को भी प्रभावित करती हैं। वर्तमान वैज्ञानिक युग में जिस कदर उद्योगों में घातक रसायनों का प्रयोग बढ़ा है, उससे यहाँ कार्य करने वाले लाखों कर्मियों पर जान का खतरा मंडरा रहा है। साथ ही आस-पास की मानवीय बस्तियाँ और प्रकृति भी दुर्घटनाओं की जद में आ गई हैं। औद्योगिक इकाइयों में इस्तेमाल आने वाले विस्फोटक रसायनों का भंडारण व परिवहन पर्यावरण में इनके रिसाव की आशंका को बढ़ाता है। इकाइयों में हुई जरा सी चूक बड़ी रासायनिक आपदा को सहज ही आमन्त्रण देती है। थोड़ी सी सूझबूझ और सम्पूर्ण जानकारी की मदद से घातक रासायनिक दुर्घटनाओं से विश्व को बचाया जा सकता है। अब जब हम यह दृढ़ संकल्प कर चुके हैं, कि रासायनिक घटनाओं से संसार को बचाना है तो इन घटनाओं के प्रमुख कारक, स्रोत व इनके निवारण को जानना भी जरूरी हो गया है। साथ ही इस दिशा में भारत सरकार एवं विश्व द्वारा की गई पहल से भी साक्षात्कार करते हैं।
रासायनिक आपदा के कारक
भारत के सभी क्षेत्रों के 301 जिलों, 25 राज्यों एवं 03 केन्द्र शासित प्रदेशों में 1861 विशाल दुर्घटना संकटापन्न इकाइयाँ (एमएएचयू) हैं। इनके अलावा हजारों की संख्या में पंजीकृत एवं घातक रासायनिक कारखाने (एमएएचयू मापदंड के नीचे के स्तर वाले) तथा असंगठित क्षेत्र हैं जो घातक किस्म के रसायनों का इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे गम्भीर व जटिल स्तर की आपदाओं का खतरा लगातार बना हुआ है। रासायनिक आपदाओं का बड़ा स्रोत घातक रसायनों का परिवहन है। देश में उद्योगों की भूख मिटाने के लिये विशाल स्तर पर सड़क, रेल, वायु, समुद्र व पाइपलाइनों के जरिए रसायनों का परिवहन होता है। रसायनों की ढुलाई में हुई असावधानी रासायनिक आपदा को अन्जाम दे सकती है। रासायनिक घटनाओं का दूसरा बड़ा कारक छपाईखाने, रबड़ उद्योग, पेस्टीसाइट कारखाने, पटाखा उद्योग, रेडियो एक्टिव केन्द्र एवं परमाणु संयंत्र केन्द्र आदि हैं जहाँ अभिक्रियाओं के दौरान सीधे क्लोरीन, अमोनिया, फास्फोरिक अम्ल, सल्फ्यूरिक अम्ल व पिकरिक अम्ल जैसे घातक रसायनों का प्रयोग होता है। प्रयोग में हुई जरा सी चूक बड़ी रासायनिक दुर्घटना का कारण बन सकती है। कारखानों में रसायनों के भंडारण की उचित व्यवस्था न होना भी रासायनिक आपदाओं को दावत देता है। मध्यप्रदेश के धार जिले में 2003 में बीपीसीएल ब्लॉटिंग प्लांट में टैंक से हुआ एलपीजी का रिसाव और 2004 में तमिलनाडु के कैम्पप्लास्ट मैतूर में हुआ क्लोरीन का रिसाव इसके प्रमुख उदाहरण हैं। जिसमें 27 कर्मी बुरी तरह जख्मी हुए थे।
प्राकृतिक आपदा से रासायनिक दुर्घटनाएँ
टैंक में लीकेज से रसायन का रिसाव ही रासायनिक आपदा को जन्म देगा ऐसा कहना गलत होगा। कई बार भूकम्प, चक्रवात, सुनामी और तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाएँ भी घातक रासायनिक आपदाओं का कारण बन जाती है। वर्ष 1999 में उड़ीसा में आए चक्रवात के दौरान फास्फोरिक अम्ल का बहाव प्राकृतिक आपदाजन्य रासायनिक आपदा का बड़ा उदाहरण है। कांडला पत्तन के निकट 2001 में आए भूकम्प से हुआ, क्रिलोनाइटाइल का रिसाव भी प्रकृति-जनित रासायनिक आपदा है। आतंकवादी हमले भी रासायनिक आपदाओं में इजाफे का विशाल कारण है। 08 मार्च, 2003 को गुवाहाटी के डिगबोई में यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ आसाम (उल्फा) द्वारा आईओसी के एक तेल से भरे टैंकर को जला दिया गया। टैंकर में लगभग 4500 किलो लीटर तेल था। जिसके जलने से लगभग 100 मीटर ऊँची आग की लपटों ने 3000 लोगों को अपनी चपेट में ले लिया। इसी तरह ऊपरी असम के दुलियाजान में उल्फा ने ऑइल इंडिया लिमिटेड की पाइपलाइन को जला दिया। इस पाइपलाइन के द्वारा काथलगुड़ी के बिजली निर्माण संयंत्र को तेल की आपूर्ति की जाती थी। इसके अलावा कारखानों में सांगठनिक स्तर पर होने वाली चूकें एवं कार्मिकों में रसायनों की उचित जानकारी व जागरूकता के अभाव के चलते भी समय-समय पर कई रासायनिक दुर्घटनाएँ घटित होती रहती हैं।
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