औयोध्या नगरी के तत्कालीन प्रसिद्ध वैध का नाम क्या था
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अयोध्या और प्रतिष्ठानपुर (झूंसी) के इतिहास का उद्गम ब्रह्माजी के मानस पुत्र मनु से ही सम्बद्ध है. जैसे प्रतिष्ठानपुर और यहां के चंद्रवंशी शासकों की स्थापना मनु के पुत्र ऐल से जुड़ी है, जिसे शिव के श्राप ने इला बना दिया था, उसी प्रकार अयोध्या और उसका सूर्यवंश मनु के पुत्र इक्ष्वाकु से प्रारम्भ हुआ.
बेंटली एवं पार्जिटर जैसे विद्वानों ने "ग्रह मंजरी"आदि प्राचीन भारतीय ग्रंथों के आधार पर इनकी स्थापना का काल ई.पू. 2200 के आसपास माना है. इस वंश में राजा रामचंद्रजी के पिता दशरथ 63वें शासक हैं.
अयोध्या का महत्व इस बात में भी निहित है कि जब भी प्राचीन भारत के तीर्थों का उल्लेख होता है तब उसमें सर्वप्रथम अयोध्या का ही नाम आता है: "अयोध्या मथुरा माया काशि काँची ह्य्वान्तिका, पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिका."
यहाँ यह भी ध्यान देने वाली बात है कि इन प्राचीन तीर्थों में 'प्रयाग'की गणना नहीं है! अयोध्या के महात्म्य के विषय में यह और स्पष्ट करना समीचीन होगा कि जैन परंपरा के अनुसार भी 24 तीर्थंकरों में से 22 इक्ष्वाकु वंश के थे.
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अयोध्या