P-N सन्धि डायोड पूर्ण तरंग दिष्टकारी के रूप में कैसे प्रयुक्त होता
है सरल परिपथ बनाकर इसकी कार्य विधि समझाइए?
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P-N संधि डायोड व लोड प्रतिरोध के संयोजन का परिपथ प्रत्येक अर्द्धचक्र में द्वितीयक कुण्डली के मध्य बिन्दु E से पूरा हो जाता है। अब निवेशी सिगनल के प्रथम अर्द्धचक्र के कारण जब द्वितीयक कुण्डली का A सिरा धनात्मक होता है, तो डायोड D1 अग्र अभिनत होता है तथा डायोड D2 उत्क्रम अभिनत।
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Could you ask in english please
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