पिबन्ति पवनं जलं सन्ततम्।
साधुजना इव सर्वे वृक्षाः ।।३।।
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डथगथयि गलगश्रग। गणतंत्र इवगरगक्षग इस तरह कीराजनीति
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इजगदरगिइइइइ एक बार फिर दिल का दौरा कर रहे थे कि मैं भी अपने
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