पंच को परमेश्वर क्यों माना जाता है
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अलगू चौधरी और जुम्मन शेख परम मित्र थे किंतु जब पंचायत में न्याय करने के लिए अलगू को सरपंच चुना गया तो उसने केवल न्याय का साथ दिया और बूढ़ी खाला के पक्ष में फैसला सुना दिया। इससे दोनों मित्रों की मित्रता में दरार आ गई परंतु जैसे ही अलगू और समझू साहू के झगड़े का निपटारा करने के लिए जुम्मन सरपंच बना तो उसे भी सरपंच के पद की अहमियत का पता चला। उसे महसूस हुआ कि पंचों की वाणी में परमात्मा का निवास होता है इसलिए उसने निजी क्रोध से ऊपर उठकर सच और न्याय के हक में फैसला सुनाते हुए अलगू चौधरी को न्याय दिया।
पंचों में परमेश्वर का निवास होता है। न्याय करते समय मित्र या दुश्मन नहीं देखा जाता ना ही अपना पराया देखा जाता है। उस वक्त केवल सच का साथ दिया जाता है। पंचो की वाणी और फैसला परमेश्वर की वाणी और फैसला होता है।
इसलिए पंचों को परमेश्वर कहा गया।
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