पंच महायज्ञ का सम्बंध किस कर्म से है
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पंच महायज्ञ इस प्रकार हैं...
ब्रह्मा यज्ञ
देव यज्ञ
पितृ यज्ञ
अतिथि यज्ञ
भूत यज्ञ
ब्रह्म यज्ञ ► ब्रह्मायज्ञ का तात्पर्य नित्य प्रति ध्यान, साधना, पूजा आदि से है। प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व तथा सायं काल सूर्यास्त के बाद एकांत स्थान में बैठकर ईश्वर का ध्यान करना तथा अपनी आत्मा का साक्षात्कार करना व नियमित रूप से ईश्वर का चिंतन करते रहना ही ब्रह्मा यज्ञ है। पवित्र धार्मिक ग्रंथों का पठन-पाठन करना उन्हें समझना व अन्य लोगों को समझाना भी ब्रह्मा यज्ञा है।
देव यज्ञ ► देव यज्ञा से तात्पर्य अग्निहोत्र अर्थात नित्य प्रति हवन करने से है। नित्य प्रति देव यज्ञ करने से आसपास का वातावरण शुद्ध होता रहता है, आसपास के वातावरण शुद्ध होने से वायु, जल, पृथ्वी शुद्ध होती है, जिससे रोगों और अन्य विकारों से बचाव होता है।
पितृ यज्ञ ► पितृ यज्ञ में अपने माता-पिता, गुरुजन तथा अन्य पूज्यनीय व्यक्तियों की सेवा-सुश्रूषा करना तथा उन्हें हर प्रकार से उचित मान-सम्मान देना पितृ यज्ञ है।
अतिथि यज्ञ ► अतिथि यज्ञ से तात्पर्य अपने घर में आने वाले अतिथि, विद्वानों, संत-महात्माओं, महापुरुषों आदि का स्वागत-सत्कार करना उन्हें उचित मान-सम्मान देना तथा उनकी सेवा करके उनसे ज्ञान प्राप्त करना ही अतिथि यज्ञ कहलाता है।
भूत यज्ञ ► भूत यज्ञ से तात्पर्य प्राणी मात्र के कल्याण से है। इस सृष्टि पर अनेक जीव हैं, जैसे गाय, कुत्ता, चींटी, कौवा, कीड़े, मकोड़े आदि। इन सब जीवों पर दया दिखाना व इनके लिये भोजन आदि का प्रबंध करना ही भूत यज्ञ है।
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