Hindi, asked by manojsharma34, 1 year ago

पंच परमेशवर पाठ का सारांश लिखिए|

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Answered by Anonymous
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प्रस्तुत कहानी पंच परमेश्वर, मुंशी प्रेमचंद प्रेमचंद द्वारा रचित है जिसका हम सिर्फ सारांश और समीक्षा ही पढेंगे। 


एक ही गाँव के दो व्यक्ति अलगू चौधरी और जुम्मन सेख की है। दोनों में से एक हिन्दू धर्म के और दूसरा मुस्लिम धर्म के हैं। फिर भी दोनों के बीच काफी गहरी मित्रता है जो की वन्सजो से चली आ रही थी। जुम्मन सेख की एक खाला (मासी) जो दूर के रिश्तेदार में था, परन्तु उस बुढ़िया का कोई और नहीं था। बुढ़िया के पास काफी जमीन जायदाद था। उस गाँव के जाने माने एवं प्रथिठित और सम्मानित व्यक्तियौ में बोल वाला था। 

जुम्मन के परिवार एवं स्वयं खाला के विशेष खातिर सम्मान और इज्ज़त प्रतिष्ठा का काफी ख्याल रखते थे। जुम्मन अपनी खाला से कह सुनकर कुछ दिनों के बाद जमीं के रजिस्ट्री अपने नाम करवा लिया।

रजिस्ट्री के कुछ दिनों के बाद बुढ़िया की खातिर एवं सम्मान में कमी होने लगी। एक दिन ऐसा भी देखने को आया की अब बुढ़िया को खाने और पहनने के भी लाले पर गये। और सब ताने देने लग गये की बुढ़िया अमृत पीकर आई हैं न जाने कब मरेगी, पूरे जायदाद खारक ही मरेगी। प्रत्दिन इस तरह के घटनाओं के बाद अब बुढिया ने जुम्मन सेख से पंचायत बैठाने की बात कहि।  जुम्मन सेख ने कही के मैं ये थोरे ही जानता था की तुम अमर बनकर रहेगी। जा जिस किसी को तुम्हें पंच में बुलाना हो या फैसला करना हो सोख से बुला ला और न्याय करवा ले। जुम्मन सेख यह जानता था की मेरे विरोध में गाँव का कोई भी पंच फैसला नहीं करेंगे।

अंत में एक दिन की संध्या में पंच बैठाने हेतु बुढिया जर्जर हालत में भी पूरे गाँव में घर घर में जाकर अपनी विपदा सरे लोगों से कह दी। परन्तु सब बहाने बनाकर उस बुढिया की मदद करने से इंकार कर दिया। आखिरि दम लगाकर यानि जान हथेली पर रखकर उसके दोस्त अलगू चौधरी के पास पहुचकर हाँफते हुए बुढ़िया सांस लेकर बोली बेटा तुम ही मेरा पंच बनकर न्याय कर मुझे उद्धार कर दो। तब इसपर अलगू चौधरी ने कहा की तुम तो जानती तो के मैं जुम्मन सेख का परम मित्र हूँ, मैं उनके खिलाफ कैसे बोल सकता हूँ। इसपर बुढिया ने अलगू चौधरी से कहा के दोस्ती टूटने के भय से इमान की बात नहीं कहोगे, इमान से बढकर क्या कोई दोस्ती होती है। बुढ़िया की यह बात अलगू चौधरी को झकझोर कर रख दिया और अंत में अलगू चौधरी ने बुढ़िया को हाँ भर दी

Answered by anujmodi66
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Answer:

प्रस्तुत कहानी पंच परमेश्वर, मुंशी प्रेमचंद प्रेमचंद द्वारा रचित है जिसका हम सिर्फ सारांश और समीक्षा ही पढेंगे।

एक ही गाँव के दो व्यक्ति अलगू चौधरी और जुम्मन सेख की है। दोनों में से एक हिन्दू धर्म के और दूसरा मुस्लिम धर्म के हैं। फिर भी दोनों के बीच काफी गहरी मित्रता है जो की वन्सजो से चली आ रही थी। जुम्मन सेख की एक खाला (मासी) जो दूर के रिश्तेदार में था, परन्तु उस बुढ़िया का कोई और नहीं था। बुढ़िया के पास काफी जमीन जायदाद था। उस गाँव के जाने माने एवं प्रथिठित और सम्मानित व्यक्तियौ में बोल वाला था।

जुम्मन के परिवार एवं स्वयं खाला के विशेष खातिर सम्मान और इज्जत प्रतिष्ठा का काफी ख्याल रखते थे जुम्मन अपनी खाला से कह सुनकर कुछ दिनों के बाद जमीं के रजिस्ट्री अपने नाम करवा लियारजिस्ट्री के कुछ दिनों के बाद बुढ़िया की खातिर एवं सम्मान में कमी होने लगी। एक दिन ऐसा भी देखने को आया की अब बुढ़िया को खाने और पहनने के भी लाले पर गये। और सब ताने देने लग गये की बुढ़िया अमृत पीकर आई हैं न जाने कब मरेगी, पूरे जायदाद खारक ही मरेगी। प्रत्दिन इस तरह के घटनाओं के बाद अब बुढिया ने जुम्मन सेख से पंचायत बैठाने की बात कहि। जुम्मन सेख ने कही के मैं ये थोरे ही जानता था की तुम अमर बनकर रहेगी। जा जिस किसी को तुम्हें पंच में बुलाना हो या फैसला करना हो सोख से बुला ला और न्याय करवा ले। जुम्मन सेख यह जानता था की मेरे विरोध में गाँव का कोई भी पंच फैसला नहीं करेंगे।

अंत में एक दिन की संध्या में पंच बैठाने हेतु बुढिया जर्जर हालत में भी पूरे गाँव में घर घर में जाकर अपनी विपदा सरे लोगों से कह दी। परन्तु सब बहाने बनाकर उस बुढिया की मदद करने से इंकार कर दिया। आखिरि दम लगाकर यानि जान हथेली पर रखकर उसके दोस्त अलगू चौधरी के पास पहुंचकर हाँफते हुए बुढ़िया सांस लेकर बोली बेटा तुम ही मेरा पंच बनकर न्याय कर मुझे उद्धार कर दो। तब इसपर अलगू चौधरी ने कहा की तुम तो जानती तो के मैं जुम्मन सेख का परम मित्र हूँ, मैं उनके खिलाफ कैसे बोल सकता हूँ। इसपर बुढिया ने अलगू चौधरी से कहा के दोस्ती टूटने के भय से इमान की बात नहीं कहोगे, इमान से बढकरक्या कोई दोस्ती होती है। बुढ़िया की यह बात अलगू चौधरी को झकझोर कर रख दिया और अंत में अलगू चौधरी ने बुढ़िया को हाँ भर दी

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