पांच सूक्तियां अर्थ सहित in Sanskrit
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1. अप्रियस्य च पथ्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभ: (वाल्मीकि रामायण 6.16.21)
अर्थ– अप्रिय किंतु परिणाम में हितकर हो ऐसी बात कहने और सुनने वाले दुर्लभ होते हैं।
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2. 'अतिथि देवो भव' (तैत्तिरीयोपनिषद् 1/11/12)
अर्थ– अतिथि देव स्वरूप होता है।
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3. 'अर्थो हि कन्या परकीय एव।' (अभि.शाकुन्तलम्)
अर्थ– कन्या वस्तुत: पराई वस्तु है।
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4. 'अहिंसा परमो धर्म:।' (महाभारत-अनुशासनपर्व)
अर्थ– अहिंसा परम धर्म है।
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5. 'अहो दुरंता बलवद्विरोधिता।' (किरातार्जुनीयम् 1/23)
अर्थ– बलवान् के साथ किया गया वैर-विरोध होना अनिष्ट अंत है।..
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