पाँच संस्कृत के ग्रंथों के नाम लिखिए
पाँच फलों के नाम संस्कृत में लिखिए
पाँच महापुरुषों के नाम लिखिए
सभी संस्कृत में
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तेरा साईं तुज्झ में, ज्यों पुहुपन में बास। कस्तूरी का मिरग ज्यों, फिर-फिर ढूँदै घास ॥ 1 ॥ सत गुरु की महिमा अनँत, अनँत किया उपगार। लोचन अनँत उधाड़िया, अनँत दिखावणहार ।। 2 ।। गुरु कुम्हार सिष कुंभ है, गढ़ि-गढ़ि काढ़े खोट। अन्तर हाथ सहार दे, बाहर बाहै चोट ॥3॥ पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय॥4॥ माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर । कर का मनका डारि दे, मन का मनका फेर ॥5॥ जाति न पूछो साधु की, पूछि लीजिए ज्ञान। मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान॥6॥ बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय । जो दिल खोजा आपना, मुझ-सा बुरा न कोय॥7॥ जिन ढूँढ़ा तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैठ। जो बौरा डूबन डरा, रहा किनारे बैठ॥8॥ जा घट प्रेम न संचरै, सो घट जान मसान। जैसे खाल लोहार की, साँस लेत बिनु प्रान॥9॥
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब।
पल में परलय होएगा, बहुरि करेगो कब ।। 10॥