Hindi, asked by jasminebawa2007, 6 months ago

पांच यम का नाम लिखकर उसका अर्थ बताएं​

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Answered by TheBrainlyKing1
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महर्षि पतंजलि द्वारा योगसूत्र में वर्णित पाँच यम-

अहिंसा

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अहिंसा[[सत्gfhhfet crअस्तेय

अहिंसा[[सत्gfhhfet crअस्तेयब्रह्मचर्यfhjxr.

अहिंसा[[सत्gfhhfet crअस्तेयब्रह्मचर्यfhjxr.अपरिग्रहfgjxr

शान्डिल्य उपनिषद तथा स्वात्माराम द्वारा वर्णित दस यम-

अहिंसा

अहिंसासत्य

अहिंसासत्यअस्तेय

अहिंसासत्यअस्तेयब्रह्मचर्य

अहिंसासत्यअस्तेयब्रह्मचर्यक्षमा

अहिंसासत्यअस्तेयब्रह्मचर्यक्षमाधृति

अहिंसासत्यअस्तेयब्रह्मचर्यक्षमाधृतिदया

अहिंसासत्यअस्तेयब्रह्मचर्यक्षमाधृतिदयाआर्जव

अहिंसासत्यअस्तेयब्रह्मचर्यक्षमाधृतिदयाआर्जवमितहार

अहिंसासत्यअस्तेयब्रह्मचर्यक्षमाधृतिदयाआर्जवमितहारशौच

Answered by parkjimin25
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Answer:

यम के पाँच प्रकार हैं- (1) अहिंसा, (2) सत्य, (3) अस्तेय, (4) ब्रह्मचर्य और (5) अपरिग्रह

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(1) अहिंसा : ' आत्मवत् सर्वभूतेषु'- अर्थात सबको स्वयं के जैसा समझना ही अहिंसा है। मन, वचन और कर्म से हिंसा न करना ही अहिंसा माना गया है, लेकिन अहिंसा का इससे भी व्यापक अर्थ है। स्वयं के साथ अन्याय या हिंसा करना भी अपराध है। क्रोध करना, लोभ, मोह पालना, किसी वृत्त‍ि का दमन करना, शरीर को कष्ट देना आदि सभी स्वयं के साथ हिंसा है।

अहिंसक भाव रखने से मन और शरीर स्वस्थ होकर शांत‍ि का अनुभव करता है।

(2) सत्य : सत्य का आमतौर पर अर्थ माना जाता है झूठ न बोलना। सत् और तत् धातु से मिलकर बना है सत्य, जिसका अर्थ होता है यह और वह- अर्थात यह भी और वह भी, क्योंकि सत्य पूर्ण रूप से एकतरफा नहीं होता। रस्सी को देखकर सर्प मान लेना सत्य नहीं है, किंतु उसे देखकर जो प्रतीति और भय उत्पन हुआ, वह भी सत्य है।

सत्य को समझने के लिए एक तार्किक बुद्धि की आवश्यकता होती है। तार्किक‍ बुद्धि आती है भ्रम और द्वंद्व के मिटने से। भ्रम और द्वंद्व मिटता है मन, वचन और कर्म से एक समान रहने से।

(3) अस्तेय : इसे अचौर्य भी कहते हैं अर्थात चोरी की भावना नहीं रखना, न ही मन में चुराने का विचार लाना। धन, भूमि, संपत्ति, नारी, विद्या आदि किसी भी ऐसी वस्तु जिसे अपने पुरुषार्थ से अर्जित नहीं किया या किसी ने हमें भेंट या पुरस्कार में नहीं दिया, को लेने के विचार मात्र से ही अस्तेय खंडित होता है। इस भावना से चित्त में जो असर होता है उससे मानसिक प्रगति में बाधा उत्पन्न होती है। मन रोगग्रस्त हो जाता है।

(4) ब्रह्मचर्य : इसका अर्थ भी व्यापक है। आमतौर पर गुप्तेंद्रियों पर संयम रखना ही ब्रह्मचर्य माना जाता है। ब्रह्मचर्य का शाब्दिक अर्थ है उस एक ब्रह्म की चर्या या चरना करना। अर्थात उसके ही ध्यान में रमना और उसकी चर्चा करते रहना ही ब्रह्मचर्य है। समस्त इंद्रियों के संयम के अस्खलन को ही ब्रह्मचर्य कहते हैं।

(5) अपरिग्रह : इसे अनासक्ति भी कहते हैं अर्थात किसी भी विचार, वस्तु और व्यक्ति के प्रति मोह न रखना ही अपरिग्रह है। कुछ लोगों में संग्रह करने की प्रवृत्ति होती है, जिससे मन में भी व्यर्थ की बातें या चीजें संग्रहित होने लगती हैं। इससे मन में संकुचन पैदा होता है। इससे कृपणता या कंजूसी का जन्म होता है। आसक्ति से ही आदतों का जन्म भी होता है। मन, वचन और कर्म से इस प्रवृत्ति को त्यागना ही अपरिग्रही होना है।

अंत त: : उक्त पाँच 'यम' कहे गए है यह अष्टांग योग का पहला चरण है। यम को ही विभिन्न धर्मों ने अपने-अपने तरीके से समझाया है किंतु योग इसे समाधि तक पहुँचने की पहली सीढ़ी मानता है। यह उसी तरह है जिस तरह की प्राथमिक स्कूल में दाखिला लिया जाता है। निश्चित ही इसे साधना कठिन जान पड़ता है किंतु सिर्फ उन लोगों के लिए जिन्होंने जमाने की हवा के साथ बहकर अपना स्वाभाविक स्वभाव खो दिया है।

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