पंचवटी की छाया में है
सुंदर पर्ण कुटीर बना ।
उसके सम्मुख स्वच्छ शिला पर
धीर-वीर निर्भीक मना ।।
जाग रहा यह कौन धर्नुर
जबकि भुवन भर सोता है ?
भोगी कुसुमायुध योगी-सा
बना दृष्टिगत होता है bhavarth likhiye
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z j S she aggf\ Grosz "8$' '$7!5"$4=4"
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