पंछी और पेड़ के बीच का संवाद
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पेड़– अरे कबूतर भाई! बहुत दिनों के बाद इधर का रुख किया है तुमने। कहां थे इतने दिन?
पक्षी–अरे भाई, मैं कहां जाऊंगा, बस भोजन की तलाश में यहां वहां भटकते हुए दूर निकल गया था।
पेड़– अच्छा! फिर तो खूब-पेट भर कर खाया होगा।
पक्षी– नहीं पेड़ भाई, खाना तो मिला ही नहीं, हां एक शिकारी से जरूर मुठभेड़ हो गई। बड़ी कठिनाई से उससे जान बचाकर आ रहा हूं।
पेड़– अच्छा! चलो शुक्र है तुम उसे शैतान शिकारी के चंगुल से तो बच गए।
पक्षी– हां भाई, शिकारी की चंगुल से तो बच गया लेकिन एक बात सोच- सोच कर मैं बहुत परेशान हूं।
पेड़--कौन सी बात?
पक्षी– वह यह कि मनुष्य की बुद्धि को क्या हो गया है! क्यों वह अपने लिए खुद ही कब्र खोदने में लगा हुआ है?
एक तरफ तो वह तेजी से पेड़ काटने पर लगा हुआ है और दूसरी तरफ पक्षियों व जानवरों को अपने स्वार्थ के लिए मारता जा रहा है।
पेड़– हां भाई ठीक कहते हो इसी वजह से ही हम दोनों का अस्तित्व खतरे में आ गया है। और यह असंतुलन पैदा करके मानव अपना ही नुकसान कर रहा है। पेड़ों के बिना तो उसका अपना जीवन ही मुश्किल में आ जाएगा।
पंछी– और ना जाने हम सीध-साधे पक्षियों ने उसका क्या बिगाड़ा है? जो हमारी भी जान के पीछे पड़ा है।
पेड़– देखते हैं क्या होगा, अब चलो, तुम भी शांत हो जाओ और विश्राम कर लो।