पुछति गामवधु सिय सोड कहा सावरे से सखि शबरे को है
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सखी सपने में एक अनोखी बात हो गई,
साँवरे से मेरी मुलाकात हो गई,
मैं तो गहरी नींद में सोए रही थी,
उस प्यारे के सपनों में खोए रही थी,
सखी कैसे बताऊँ करामात हो गई,
साँवरे से मेरी.......
धीरे धीरे वो पास मेरे आने लगे,
मुझे बिरहन को दिल से लगाने लगे,
मेरी अखियों से अश्क की बरसात हो गई,
साँवरे से मेरी .......
मैंने सोचा अब अपने मैं दिल की कहूं,
ये जुदाई का दर्द मैं कबतक सहुँ,
यही सोचते ही सोचते प्रभात हो गई,
साँवरे से मेरी .....
अपने साजन की पागल दीवानी हुई,
ऐसी ‘चित्र-विचित्र’ की कहानी हुई,
मिली उसकी झलक ये सौगात हो गई,
साँवरे से मेरी ......
Explanation:
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