पांडुलिपियों को कहां रखा जाता है
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पाण्डुलिपि या मातृकाग्रन्थ एक हस्तलिखित ग्रन्थविशेष है । इसको हस्तप्रति, लिपिग्रन्थ इत्यादि नामों से भी जाना जाता है। आङ्ग्ल भाषा में यह Manuscript शब्द से प्रसिद्ध है इन ग्रन्थों को MS या MSS इन संक्षेप नामों से भी जाना जाता है। हिन्दी भाषा में यह 'पाण्डुलिपि', 'हस्तलेख', 'हस्तलिपि' इत्यादि नामों से प्रसिद्ध है । ऐसा माना जाता है कि सोलहवीं शताब्दी (१६) के आरम्भ में विदेशियों के द्वारा संस्कृत का अध्ययन आरम्भ हुआ । अध्ययन आरम्भ होने के पश्चात इसकी प्रसिद्धि सत्रहवीं शताब्दी के अन्त में और अठारवीं शताब्दी के आरम्भ में मानी जाती है । उस कालखण्ड में भारत में स्थित मातृकाग्रन्थों का अध्ययन एवं संरक्षण विविध संगठनों के द्वारा किया गया।
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पांडुलिपियों को पुस्तकालय और अभिलेखागार में रखा जाता है ।
पुस्तकालय और अभिलेखागार वे थे जहाँ संपन्न लोग, मंदिर, सम्राट और मठ इकट्ठा होते थे और दस्तावेजों को संग्रहीत करते थे। पाण्डुलिपि सामान्य लोगों द्वारा एकत्र नहीं की जाती थी।
पांडुलिपियां वास्तव में क्या हैं?
एक पांडुलिपि कागज, छाल, कपड़ा, धातु, ताड़ के पत्ते, या महत्वपूर्ण वैज्ञानिक, ऐतिहासिक, या सौंदर्य महत्व के साथ किसी भी अन्य सामग्री पर हस्तलिखित काम है जो कम से कम पचहत्तर साल पहले की है। पांडुलिपियां लिथोग्राफ या मुद्रित खंड नहीं हैं। पांडुलिपियां विभिन्न भाषाओं और लिपियों में लिखी जाती हैं। एक भाषा अक्सर विभिन्न लिपियों में लिखी जाती है। संस्कृत विभिन्न लिपियों में लिखी गई है, जिनमें उड़िया, ग्रंथ, देवनागरी और अन्य शामिल हैं।
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