पंडित अलोपीदीन की गाड़ियां कहां जा रही थी
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जब दूसरे दिन पंडित अलोपीदीन अभियुक्त होकर कांस्टेबलों के साथ, हाथों में हथकड़ियां, हृदय में ग्लानि और क्षोभ भरे, लज्जा से गर्दन झुकाए अदालत की तरफ़ चले तो सारे शहर में हलचल मच गई. मेलों में कदाचित आंखें इतनी व्यग्र न होती होंगी. भीड़ के मारे छत और दीवार में कोई भेद न रहा. किंतु अदालत में पहुंचने की देर थी.
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