पंडित भैया लाल व्यास - बुंदेलीन काव्य टिप्पणी
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छत्रसाल के समय में जहां बुन्देलखण्ड को "इत जमुना उत नर्मदा, इत चम्बल उत टोंस" से जाना जाता है, वहीं भौगोलिक दृष्टि जनजीवन, संस्कृति और भाषा के संदर्भ से बुन्देला क्षत्रियों के वैभवकाल से जोड़ा जाता है। बुन्देली इस भू-भाग की सबसे अधिक व्यवहार में आने वाली बोली है। विगत ७०० वर्षों से इसमें पर्याप्त साहित्य सृजन हुआ। बुन्देली काव्य के विभिन्न साधनाओं, जातियों और आदि का परिचय भी मिलता है। काव्रू का आधार इसीलिए बुन्देलखण्ड की नदियां, पर्वत और उसके वीरों को बनया गया है। विभिन्न प्रवृत्तियों और आन्दोलनों के आधार पर बुन्देलखण्ड काव्य के कुल सात युग माने जा सकते हैं, जिन्हें अध्ययन के सुविधा से निम्न नामों से अभिहित किया गया है।
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