'....पंडिताइन चाची के न्यायविधान में न क्षमा का स्थान था, न अपील का अधिकार।'
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प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘बिन्दा’ नामक पाठ से लिया गया है जिसकी लेखिका महादेवी वर्मा हैं। संदर्भ : नयी अम्मा अर्थात् पंडिताइन चाची के दिल में न दया थी और न क्षमा। वह बिन्दा को साधारण सी गलती पर भी उसे कठोर से कठोर दण्ड देती थी। स्पष्टीकरण : एक दिन दूध गर्म करते समय दूध उफन कर बाहर निकलने लगा। तब बिन्दा उसे उतारने की कोशिश करने लगी पर वह दूध उसके पैरो पर गिर गया और पैर जल गया। लेकिन माँ के पास जाने की बजाय वह छुपना चाहती थी। वह अपनी सहेली के घर की कोठरी में छुप जाती है। तभी उन्हें पण्डिताइन चाची की उग्र आवाज सुनाई देती है। लेखिका की माँ बिन्दा के जले पैरों पर तिल का तेल लगाती है, और उसे उसके घर भिजवा देती है। पर चाची उसके प्रति सहानुभूति न दर्शाते हुए सेवा करने के बजाय कठोर शब्दों से डाटना, मारना शुरु करती है। इससे यही लगता है कि पंडिताइन चाची के न्यायविधान में न क्षमा का स्थान था, न अपील का अधिकार।Read more on Sarthaks.com - https://www.sarthaks.com/609809/?show=609812#a609812