पंडित जवाहर नेहरू ने संस्कृति को क्या माना है
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Pandit Jawaharlal Nehru ne sanskrit ko prakriti mana hai .
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पंडित जवाहरलाल नेहरू के अनुसार संस्कृति मन और आत्मा का विस्तार है।
Explanation:
मन और आत्मा का विस्तार ही संस्कृति है। यह कभी भी मानसिक संकुचन या मानव आत्मा या राष्ट्र की भावना पर संयम नहीं है। यह कथन जवाहरलाल नेहरू ने अपने भाषण में "अनुसंधान की भावना" शीर्षक से दिया था। जवाहर लाल नेहरू द्वारा अपनी पुस्तक "डिस्कवरी ऑफ इंडिया" में इस्तेमाल की गई अभिव्यक्ति "विविधता में एकता", इस तथ्य को संदर्भित करती है कि भारत हमेशा क्षेत्रीय, धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता के बावजूद एकजुट रहा है। भारतीय एकता परे से थोपी गई किसी चीज के बजाय एक गहरी, आंतरिक घटना है। अपनी पुस्तक "द डिस्कवरी ऑफ इंडिया" में, जवाहरलाल नेहरू पाठक को यह समझाने की कोशिश करते हैं कि सहिष्णुता सभी भारतीयों में गहराई से अंतर्निहित है। भारत न केवल एक संयुक्त देश है, बल्कि इसके नागरिक भी दूसरों की परंपराओं और विश्वदृष्टि का सम्मान करने में सक्षम हैं।
इस प्रकार, "सांस्कृतिक विविधता" शब्द का तात्पर्य उन सांस्कृतिक तत्वों की बहुलता से है जो धर्म, भाषा, नस्ल और जातीयता सहित भारतीय राष्ट्रीय पहचान बनाते हैं।