Hindi, asked by Shubhendu8898, 2 months ago

पंडित मदन मोहन मालवीय के जीवन का पर एक प्रेरक प्रसंग बताते हुए भाषण दीजिए
Speech duration:- At least 3-4 Minutes

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Answered by Anonymous
31

REQUIRED ANSWER:-

एक दिन पंडित मदन मोहन मालवीय जी ऐसे ही बैठे हुए थे। बनारस में कोई विश्वविद्यालय नहीं था। वो इसके बारे में सोच रहे थे। उन्होंने विश्वविद्यालय खोलने कि सोची पर उनके पास इतनी रकम नहीं थी। उन्होंने सोचा हैदराबाद के निजाम से मदद ली जाए। वह निजाम जी के दरबार पहुंचे। उन्होंने वहा कहा निजाम जी से कहो पांच मक्कार आए हैं। मालवीय जी निजाम जिनके दरबार पहुंचे।

हैद्राबाद निजाम ने उनसे कहा तुमने तो कहा था कि पांच मक्कार आए हैं पर तुम तो एक ही हो। मालवीय जी ने कहा पांच मक्कार मतलब ऐसा नाम जिसमें मे पांच बार मक्कार शब्द आता है। निजाम जी ने उनसे पूछा यहां क्यों आए हो ? मालवीय जी ने कहा मै विश्वविद्यालय बना रहा हूं और मुझे इसके लिए आपकी मदद चाहिए। निजाम जी ने कहा मदद नहीं मिलेगी पर मेरा जूता मिलेगा। यह कह कर उन्होंने मालवीय जी को जूता दे दिया। मालवीय जी वो जूता लेकर दरबार के बाहर आए और शोर कर के उन्होंने कुछ लोगों को इकट्ठा कर लिया। मालवीय जी ने लोगों से कहा देखो हैद्राबाद निजाम के पास कुछ देने के लिए नहीं है तो उन्होंने मुझे उनका जूता दे दिया।

हैद्राबाद निजाम को यह बात पता चली और उन्होंने मालवीय जी को उनके दरबार में बुलाया। उन्हें आसन पर बैठाकर उन्हें दस लाख रूपये दे दिए। फिर पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने बनारस मे काशी विश्वविद्यालय कि स्थापना की। इस प्रसंग से हम बहुत प्रेरणा ले सकते हैं। ये पंडित मदन मोहन मालवीय के जीवन का एक प्रेरक प्रसंग था।

शीर्षक :- अगर कोई काम अच्छे तरीके से ना हो तो उसे थोड़ा उलझाना ही बेहतर होता है ।

Answered by Anonymous
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पंडित मदनमोहन मालवीय जी भारत में ऐसे महांपुरुष थे, जिनके जैसा ना पहले कोई हुआ था ना अभी तक कोई है। इनकी उदारता और सज्जनता मशहूर है।

ये दुनियाँ में ऐसे महांपुरुष थे कि- इनके नाम के पहले महामना लगाने की उपाधि मिली थी।इनका पूरा नाम महांमना मदन मोहन मालवीय है। एक रोचक प्रसंग इनके बारे में आपसे साझा कर रही हूँ।

एक बार पंडित मदनमोहन मालवीय जी ने सोचा कि- एक विश्वविद्यालय हमारे यहां बनारस में होना चाहिए, लेकिन इतनी रकम आयेगी कहाँ से?

फिर मालवीय जी ने सोचा हैदराबाद निजाम से मदद ली जाय, ऐसा सोचकर महाँमना मदनमोहन मालवीय जी राजमहल के द्वार पर पहुंचे और उन्होंने अपना परिचय देते हुए कहा, अपने निजाम से बोलो पाँच मक्कार आयें हैं।

हैदराबाद के निजाम मीर उस्मान अली खान थे। उन्होंने उन्हें दरबार में भेजने के लिए कहा। जब मालवीय जी दरबार में आये तो, निजाम ने कहा,पाँच कहाँ तुम तो एक ही हो? तो मालवीय जी ने कहा पाँच मकार अर्थात जिस नाम में पाँच बार म शब्द आया हो।

महाँमना मदनमोहन मालवीय, इसमें पांच बार म आया है। फिर हैदराबाद निजाम ने आने का प्रयोजन पूछा, तो बोले मैं विश्वविद्यालय बनाने के लिए कुछ मदद लेने आया हूँ।

तो हैदराबाद के निजाम ने कहा, यहां पर तुम्हें जूता मिलेगा और ये कहकर उन्होंने जूता उतारकर दे दिया। और पंडित मदनमोहन मालवीय जी जूता लेकर राजमहल से बाहर चौराहे पर आ गए।

और जूते को ऊपर उठा कर सभी लोगों को इकट्ठा करने के बाद बोले— ये हैदराबाद निजाम मीर उस्मान अली खान का जूता है, उनके पास चंदा देने के लिए कुछ भी नहीं है सिर्फ ये जूता है।

इसलिए मैं इसकी नीलामी शुरू कर रहा हूँ। आप सबकी नजरों में इसकी जो कीमत है, वो लाकर दे दें। तुरंत ये बात हैदराबाद निजाम तक पहुंची, तो उन्होंने फिर पंडित मदनमोहन मालवीय जी को दरबार में बुलवाया।

और सम्मान के साथ उन्हें आसन पर बिठाया। फिर10 लाख का सबसे बड़ा दान हैदराबाद निजाम ने देकर उन्हें विदा किया।

फिर बसंत पंचमी के पावन अवसर पर, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना बाराणसी में की गई। जिसे अधिकतर लोग बी एच यू के नाम से जानते हैं।

इसमें दरभंगा के महाराजा रामेश्वर सिंह ने विश्वविद्यालय बनाने के लिए आवश्यक संसाधनों का बंदोबस्त किया था। विश्वविद्यालय को"राष्ट्रीय महत्व का संस्थान" का दर्जा प्राप्त है।

ऐसे थे हमारे महाँमना मदनमोहन मालवीय जी।

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