पंडित शादीराम को किसकी चिंता थी?
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कहानी में मानवीय भावनाओं का सुंदर ढंग से चित्रण किया गया है। फिर अंधकार था। उसमें प्रका पंडित शादीराम ने ठंडी आह भरी और सोचने लगे - क्या यह ऋण कभी सिर और परंतु दिल के बुरे न थे। वे चाहते थे कि जिस तरह भी हो, अपने यजमान लाला सदानंद उनके लिए एक-एक पैसा मोहर के बराबर था।
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