Hindi, asked by shashank4778, 5 months ago

पांडवों ने वारणावत में अपनी रक्षा किस प्रकार की?


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Answers

Answered by YashMusale
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Answer:

वेहे एक सुरंग के जरिए बाहर निकले

Answered by kirtipal1404
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दुर्योधन ने पांडवों को अपने रास्ते से हटाने के लिए अनेक षड्यंत्र किये थे। उनमें से वारणावत का षड्यत्र सबसे भीषण था। इसमें उसने न केवल सभी पांडवों बल्कि उनकी माता कुन्ती को भी जीवित जलाकर मार डालने का उपाय किया था। इस भयंकर षड्यंत्र से वे विदुर जी की सूझ-बूझ से ही निकल पाये थे।

पांडव अपनी शिक्षा पूर्ण कर चुके थे और युवराज के रूप में उनमें से सबसे वरिष्ठ युधिष्ठिर का नाम भी घोषित किया जा चुका था। यह लगभग निश्चित था कि समय आने पर उनका भारत के सम्राट के रूप में राजतिलक होगा और कौरव केवल साधारण राजकुमार बनकर रहेंगे। यही बात दुर्योधन सहन नहीं कर सकता था, इसलिए उसने पांडवों को उनकी माता सहित मार डालने का षड्यंत्र रचा। इस षड्यंत्र में उसका मामा शकुनि पूर्ण भागीदार था और कर्ण भी। दुयोधन का अंधा बाप धृतराष्ट्र उसकी मुट्ठी में था, इसलिए वह वही करता था, जो दुर्योधन चाहता था।

उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में वारणावत नामका एक स्थान है, जो मेरठ से लगभग 42 किमी है। वहाँ महाभारत के समय में वार्षिक समारोह या मेला आयोजित किया जाता था, जिसमें कुरु सम्राट शामिल होते थे। उस वर्ष दुर्योधन ने अपने पिता को समझाया कि इस बार युवराज युधिष्ठिर को वहाँ भेजा जाय, ताकि वहाँ की जनता भी अपने युवराज को देख ले। अंधा राजा फौरन इसके लिए तैयार हो गया और उसने आदेश निकाल दिया कि सभी पांडव अपनी माता के साथ इस समारोह में जायेंगे।

दुर्योधन ने उनके रहने के लिए एक ऐसा भवन बनाया, जिसकी दीवारें अत्यन्त ज्वलनशील पदार्थों से बनी हुई थीं। उसने अपने एक विश्वस्त आदमी विरोचन को उस भवन के निर्माण की देखरेख करने के बहाने वहाँ नियुक्त कर दिया और उसी को आग लगाने की जिम्मेदारी भी सौंप दी। जब विदुर को पता लगा कि सभी पांडवों और माता कुन्ती को भी इस समारोह में भेजा जा रहा है, तो उनका माथा ठनका। उन्होने अपने गुप्तचरों को भेजकर पता लगा लिया कि भवन ज्वलनशील पदार्थों से बनाया गया है और सभी को जलाकर मार डालने की योजना है। वे खुलकर राजा के आदेश का विरोध नहीं कर सकते थे, इसलिए उन्होंने पांडवों के बचाव का प्रबंध कर दिया।

सबसे पहले तो उन्होंने गुप्त शब्दों में युधिष्ठिर को इस षड्यंत्र के प्रति सतर्क कर दिया। उन्होंने कूट शब्दों में युधिष्ठिर से कहा- ‘जंगल की अग्नि सभी जानवरों को जलाकर भस्म कर देती है, लेकिन बिलों में रहने वाले जन्तु उस आग से अपनी रक्षा कर लेते हैं।’ इन शब्दों का उपयोग गुप्त संकेत के रूप में किया गया था, जैसे कि आजकल कम्प्यूटर में पासवर्ड होते हैं। युधिष्ठिर बहुत बुद्धिमान थे। वे जानते थे कि चाचा विदुर कभी कोई निरर्थक बात नहीं कहते। इससे वे समझ गये कि चाचा ने उनको आग से सावधान रहने और बचने का उपाय करने के लिए कहा है। महाभारत में इस प्रसंग के समय यह उल्लेख है कि विदुर और युधिष्ठिर ने एक गुप्त भाषा ‘मधुरा’ में बात की थी, ताकि कोई तीसरा व्यक्ति उस बातचीत को न समझ सके।

इतना ही नहीं विदुर जी ने एक सुरंग खोदने वाला भी उनके पास भेज दिया। उसने गुप्त संकेत बताकर अपनी विश्वसनीयता सिद्ध की और फिर दिन-रात मेहनत करके इतनी लम्बी सुरंग खोद दी कि वे भवन से बाहर निकलकर जंगल में जा सकें। इसी के साथ ही पांडवों ने उन दिनों आस-पास के जंगलों को शिकार के बहाने छान मारा ताकि बाहर सुरक्षित निकलने का मार्ग देख सकें और भटककर कौरवों के हाथ न पड़ जायें।

जब सुरंग तैयार हो गयी, तो पांडवों ने जिस दिन विरोचन को महल में आग लगानी थी, उससे एक दिन पहले ही एक महिला को उसके 5 पुत्रों के साथ भोजन पर बुलाया और उनको नशे में धुत करके भीतर ही सुला दिया। फिर विरोचन के कमरे का दरवाजा बाहर से बन्द कर दिया और स्वयं महल में आग लगाकर सुरंग के रास्ते बाहर निकल गये। महल वास्तव में बहुत ज्वलनशील था, इसलिए शीघ्र ही पूरा आग की लपटों में समा गया। विरोचन भी जलकर मर गया, उसे अपना बचाव करने का भी मौका नहीं मिला।

जलते महल से बाहर निकलकर पांडव रात ही रात में जंगल को पार करके पूर्व की दिशा में गंगा के किनारे पहुँच गये। गंगा नदी के पार राक्षसों का क्षेत्र था, जहाँ जाना खतरे से खाली नहीं था, लेकिन गंगा के पार न जाने पर कौरवों को उनका पता चल जाता और वे आसानी ने पांडवों की हत्या कर देते। इसलिए उन्होंने गंगा को पार करके राक्षसों के क्षेत्र में जाना ही उचित समझा। विदेर जी ने एक नाव का प्रबंध कर रखा था, जिसमें बैठकर वे प्रातः होने से पहले ही गंगा के पार पहुँच गये।

इधर हस्तिनापुर में जब पांडवों के जलकर मरने का समाचार पहुँचा, तो दिखावे के लिए कौरवों ने बहुत आँसू बहाये, लेकिन मन ही मन खुश भी हुए कि पांडु का पूरा वंश समाप्त हो गया। विरोचन भी जलकर मर गया था, यह जानकर दुर्योधन का माथा ठनका था, लेकिन प्रकट में उसने कुछ नहीं किया। जले हुए भवन में 5 पुरुषों और एक महिला की लाश जली हुई मिली थी, इसलिए सबने यह मान लिया कि पाँचों पांडव अपनी माता कुंती सहित जल मरे। वैसे दुर्योधन ने अपने गुप्तचर छोड़े भी थे, लेकिन वे पांडवों का कोई सुराग नहीं पा सके, क्योंकि पांडव तो राक्षसों के क्षेत्र में थे, जहाँ तक गुप्तचर नहीं पहुँच सकते थे।

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