पांडवों ने वन में क्या कष्ट सहे
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सभी पाण्डव सब प्रकार की विद्याओं में प्रवीण थे। पाण्डवों ने सम्पूर्ण दिशाओं पर विजय पाई और युधिष्ठिर राज्य करने लगे। मयनिर्मित सभाभवन में अनेक वैचित्र्य थे। दुर्योधन जब वहां घूम रहा था तब उसको अनेक बार स्थल पर जल की, जल पर स्थल की, दीवार में दरवाजे की और दरवाजे में दीवार की भ्रांति हुई। कहीं वह सीढ़ी में समतल की भ्रांति होने के कारण गिर गया और कहीं पानी को स्थल समझ पानी में भीग गया। ऐसे ही एक बावली में उसके गिर जाने पर युधिष्ठिर के अतिरिक्त शेष चारों पांडव हंसने लगे। दुर्योधन परिहासप्रिय नहीं था। अत: ईर्ष्या, लज्जा आदि से जल उठा। राजसूय यज्ञ में राजा अनेक प्रकार की भेंट लेकर आये थे। द्विजों में प्रधान कुणिंद ने धर्मराज को भेंट में एक शंख दिया, जो अन्नदान करने पर स्वयं बज उठता था। उसकी ध्वनि से वहां उपस्थित सभी राजा तेजोहीन तथा मूर्च्छित हो गये, मात्र धृष्टद्युम्न, पांडव, सात्यकि तथा आठवें श्रीकृष्ण धैर्यपूर्वक खड़े रहे। दुर्योधन आदि के मूर्च्छित होने पर पांडव आदि जोर-जोर से हंसने लगे तथा अर्जुन ने अत्यंत प्रसन्न होकर एक ब्राह्मण को पांच सौ बैल समर्पित किये। युधिष्ठिर ने वह शंख अर्जुन को भेंटस्वरूप दे दिया।
अनेक घटनाओं से दुर्योधन चिढ़ गया थां अत: हस्तिनापुर जाते हुए उसने मामा शकुनि के साथ पांडवों को हराकर उनका वैभव हस्तगत करने की एक युक्ति सोचीं शकुनि द्यूतक्रीड़ा में निपुण था-युधिष्ठिर को शौक अवश्य था किंतु खेलना नहीं आता था। अत उन सबने मिलकर धृतराष्ट्र को मना लिया। विदुर के विरोध करने पर भी धृतराष्ट्र ने उसी को इन्द्रप्रस्थ जाकर युधिष्ठिर को आमन्त्रित करने के लिए कहा, साथ ही यह भी कहा कि वह पांडवों को उनकी योजना के विषय में कुछ न बताये। विदुर उनका संदेश लेकर पांडवों को आमन्त्रित कर आये। पांडवों के हस्तिनापुर में पहुंचने पर विदुर ने उनको एकांत में संपूर्ण योजना से अवगत कर दिया तथापि युधिष्ठिर ने चुनौती स्वीकार कर ली तथा द्यूतक्रीड़ा में वे व्यक्तिगत समस्त दाव हारने के बाद भाइयों को, स्वयं अपने को तथा अंत में द्रौपदी को भी हार बैठे। विदुर ने कहा कि अपने-अपको दांव पर हारने के बाद युधिष्ठिर द्रौपदी को दांव पर लगाने के अधिकारी नहीं रह जाते, किंतु धृतराष्ट्र ने प्रतिकामी नामक सेवक को द्रौपदी को वहां ले आने के लिए भेजा। द्रौपदी ने उससे यही प्रश्न किया कि धर्मपुत्र ने पहले कौन सा दांव हारा है- स्वयं अपना अथवा द्रौपदी का।
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