पाहन पूजे हरि मिले, तो मैं पूजू पहार।
ताते या चाकी भली, पीस खाय संसार। इसका मतलब
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Explanation:
पीस खाय संसार।।
यह दोहा कबीरदास जी का है ।इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि यदि पत्थर पूजने से ईश्वर मिले तो मैं पहाड़ की पूजा करूँ,इससे तो अपने घर में चकरी ही अच्छी है जिससे सारा संसार आटा पीस कर खाता है।
आज के संदर्भ में जब इस बात को देखें तो मैं इसे कहानी के माध्यम से बताना चाहूँगी।एक बार एक महिला ने अपने पुत्र का विवाह किया, बहु आयी, सास ने बहु से कहा कि चलो तुम्हें मंदिर में पूजा करा लाऊँ, दोनों मंदिर गयी। मंदिर पहुचते बहु ने दो शेर देखा, बहु डर गयी । तब सास ने बोला, डरो मत ये तो पत्थर का है, और अपना माथा पीटा कहा, क्या पागल बहु मिली है। फिर आगे बढ़ी तो गाय अपने बछड़े को दूध पिला रही थी ।बहु बोली,माता जी पहले घर जाकर एक बाल्टी ले कर आऊं, दूध निकाल लूँ ।सास फिर नाराज हुयी । सास बोली, ये पत्थर का है।कही पत्थर की भी गाय दूध देती है,फिर आगे मंदिर में पहुची ।तब सास बोली , अब चलो देवी की पूजा करो। बहु इधर-उधर देखने लगी बोली ,कहाँ है देवी ? मुझे तो कहीं नही दिख रही हैं।सास ने कहा ,सामने ही देवी हैं । इनसे जो मागों वह मिलता है।तब बहु बोली,ये तो पत्थर है ये मुझे क्या देगी।मेरे लिये तो आप ही देवी हो ,आप से जो प्यार सम्मान मिलेगा ,वो यहां नही मिल सकता। आप घर चलिये ,मैं आपकी ही पूजा करुँगी , आपकी ही सेवा करुंगी , आप ही मेरी देवी हो।
कहने का भाव यह है कि जो आप के पास है उसकी इज्जत करो, उसकी ही सेवा करो ,वही सच्ची सेवा है, वही पूजा है।
मानवता के लिये उससे ज्यादा कुछ नही है,अगर आप घर में रहनेवालों की सेवा नही करेंगे और बाहर जाकर मंदिर में भगवान की पूजा करते हैं । वह पूजा कभी सफल नही हो सकती