Business Studies, asked by nkkurmi710, 8 days ago

पूंजी जो व्यवसाय के पृतिदिन के संचालन हेतु आवश्यक होती है​

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Answered by arvindbhaiasalaliya
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Answer:

कार्यशील पूंजी का अर्थ

व्यवसाय के संचालन से सम्बन्धित दिन-प्रतिदिन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कुछ सम्पत्तियों की आवश्यकता होती है। इन सम्पत्तियों में रोकड़, प्राप्त विपत्र, विनियोग, कच्चा माल, निर्मित माल एवं अल्पकालीन ऋण आदि को सम्मिलित किया जाता है। इन सम्पत्तियों में विनियोजित पूंजी को कार्यशील पूंजी कहते हैं। कार्यशील पूंजी व्यवसाय के दिन-प्रतिदिन के आवश्यकताओं की पूर्ति एवं प्रगति हेतु स्थिर सम्पत्तियों के लिए आवश्यक पूंजी के साथ-साथ चालू सम्पत्तियों के लिए भी पर्याप्त पूंजी की व्यवस्था करती है। किसी भी कोष की प्राप्ति जो चालू सम्पत्तियों को बढ़ाता है। उस कोष को कार्यशील पूॅंजी की संज्ञा दी जाती है।

Explanation:

कार्यशील पूंजी की आवश्यकता एवं महत्व

व्यवसाय का संचालन उचित मात्रा में स्थायी सम्पत्तियों का प्रबन्ध कर लेने मात्र से ही नहीं किया जा सकता बल्कि इन सम्पत्तियों का पूर्ण उपयोग करके ही व्यवसाय में लाभ अर्जित किया जा सकता है। स्थायी सम्पत्तियों का पूर्ण उपयोग कार्यशील पूंजी के उचित उपयोग पर निर्भर करता है। अत: व्यवसाय की दिन-प्रतिदिन की क्रियाओं में कार्यशील पूंजी के प्रबन्ध की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। इसकी आवश्यकता व्यवसाय की सम्पत्तियों की क्रय शक्ति को सुरक्षा प्रदान करना एवं विनियोगों पर प्रत्याय बढ़ाना है। इस हेतु कार्यशील पूंजी का निर्धारण व्यवसाय की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए किया जाता है। सामान्यत: किसी भी व्यवसाय में कार्यशील पूंजी की मात्रा न तो आवश्यकता से अधिक होनी चाहिए और न ही कम। दोनों ही स्थितियां व्यवसाय के लिए हानिकारक सिद्ध होती है। एक व्यवसाय में कार्यशील पूंजी का वही स्थान होता है जो मानव शरीर में हृदय का होता है । हृदय को जैसे ही रक्त मिलता है वह कार्य करना प्रारम्भ कर देता है। वैसे ही व्यवसाय में कार्यशील पूँजी स्रोत के एकत्रित होते ही व्यवसाय अपनी गतिविधियाँ आरम्भ करने लगता है और जैसे ही वह प्रवाह रूक जाता है व्यवसाय समापन की ओर अग्रसर होने लगता है। इसलिए कहा जाता है कि व्यवसाय की तरलता की आवश्यकताएँ क्या हैं? और दायित्वों का भुगतान कब और कितने समय बाद करना है?

व्यवसाय का संचालन उचित मात्रा में स्थायी सम्पत्तियों का प्रबन्ध कर लेने मात्र से ही नहीं किया जा सकता बल्कि इन सम्पत्तियों का पूर्ण उपयोग करके ही व्यवसाय में लाभ अर्जित किया जा सकता है। स्थायी सम्पत्तियों का पूर्ण उपयोग कार्यशील पूंजी के उचित उपयोग पर निर्भर करता है। अत: व्यवसाय की दिन-प्रतिदिन की क्रियाओं में कार्यशील पूंजी के प्रबन्ध की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। इसकी आवश्यकता व्यवसाय की सम्पत्तियों की क्रय शक्ति को सुरक्षा प्रदान करना एवं विनियोगों पर प्रत्याय बढ़ाना है। इस हेतु कार्यशील पूंजी का निर्धारण व्यवसाय की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए किया जाता है। सामान्यत: किसी भी व्यवसाय में कार्यशील पूंजी की मात्रा न तो आवश्यकता से अधिक होनी चाहिए और न ही कम। दोनों ही स्थितियां व्यवसाय के लिए हानिकारक सिद्ध होती है। एक व्यवसाय में कार्यशील पूंजी का वही स्थान होता है जो मानव शरीर में हृदय का होता है । हृदय को जैसे ही रक्त मिलता है वह कार्य करना प्रारम्भ कर देता है। वैसे ही व्यवसाय में कार्यशील पूँजी स्रोत के एकत्रित होते ही व्यवसाय अपनी गतिविधियाँ आरम्भ करने लगता है और जैसे ही वह प्रवाह रूक जाता है व्यवसाय समापन की ओर अग्रसर होने लगता है। इसलिए कहा जाता है कि व्यवसाय की तरलता की आवश्यकताएँ क्या हैं? और दायित्वों का भुगतान कब और कितने समय बाद करना है?संस्था के पास जितनी चल सम्पत्तियॉं हैं उन्हें किस दर या सीमा से परिवर्तित किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त संस्था की स्कन्ध नियंत्रण प्रणाली एवं स्थायी सम्पत्तियों के प्रशासन का भी अध्ययन करना आवश्यक है।

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