पिंजरे का पंछी अपने को बादलों के हवाले करने से क्यों डरता है?
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सोने के पिंजरे में था पिंजरे का पंछी,
और वन का पंछी था वन में !
जाने कैसे एक बार दोनों का मिलन हो गया,
कौन जाने विधाता के मन में क्या था !
वन के पंछी ने कहा,'भाई पिंजरे के पंछी
हम दोनों मिलकर वन में चलें.'
पिंजरे का पंछी बोला,'भाई बनपाखी,आओ
हम आराम से पिंजरे में रहें.'
वन के पंछी ने कहा,'नहीं
मैं अपने-आपको बांधने नहीं दूँगा.'
पिंजरे के पंछी ने पूछा,
'मगर मैं बाहर निकलूं कैसे !'
बाहर बैठा-बैठा वन का पंछी वन के तमाम गीत गा रहा है,
और पिंजरे का पंछी अपनी रटी-रटाई बातें दोहरा रहा है;
एक की भाषा का दूसरे की भाषा से मेल नहीं.
वन का पंछी कहता है,
'भाई पिंजरे के पंछी, तनिक वन का गान तो गाओ.'
पिंजरे का पंछी कहता है,
'तुम पिंजरे का संगीत सीख लो.'
वन का पंछी कहता है,
'ना,मैं सिखाए-पढाये गीत नहीं गाना चाहता.'
पिंजरे का पंछी कहता है,
'भला मैं जंगली गीत कैसे गा सकता हूँ.'
वन का पंछी कहता है,
'आकाश गहरा नीला है,
उसमें कहीं कोई बाधा नहीं है.'
पिंजरे का पंछी कहता है,
'पिंजरे की परिपाटी
कैसी घिरी हुई है चारों तरफ़ से !'
वन का पंछी कहता है,
'अपने-आपको
बादलों के हवाले कर दो.'
पिंजरे का पंछी कहता है,
'सीमित करो,अपने को सुख से
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