'पिजरे में बंद पक्षी' पर पंक्षी का आत्मकथा
Answers
Answered by
5
चार साल के उस बालक को पक्षियों से बेहद प्यार था। पक्षी उसके घर-आंगन में जब भी आते, वह उनसे भरपूर खेलता। उन्हें जी भरकर दाने खिलाता। पक्षी जब उड़ते, तो उसे बहुत अच्छा लगता। एक दिन बेटे ने अपने पिता से कहा, मैं तोता और कबूतर की तरह नहीं उड़ सकता?नहीं! पिता ने पुत्र को पुचकारते हुए कहा। पुत्र ने फिर सवाल किया, क्यों नहीं? पिता ने समझाया, क्योंकि बेटे, आपके पंख नहीं हैं।उस समाधान से बच्चे का जी तो बहल गया, पर थोड़ी देर बाद उसने फिर पूछा, पिता जी, क्या तोता और कबूतर मेरे साथ नहीं रह सकते हैं? शाम को मैं उनके साथ खेलना चाहता हूं।क्यों नहीं बेटे? हम आज ही आपके लिए तोता, कबूतर जैसी चिड़िया ले आएंगे। जब जी चाहे, आप उनसे खेलना। हमारा बेटा हमसे कोई चीज मांगे और हम नहीं लाएं, ऐसा कैसे हो सकता है?शाम को जब पिता घर लौटे, तो उनके हाथों में तोते और कबूतरों के पिंजरे थे। पंछियों को पिंजरों में दुबके पड़े देखकर पुत्र खुश न हो सका। वह बोला, ये इतने उदास क्यों हैं? पिता ने बेटे को तसल्ली देते हुए कहा, अभी ये नए-नए आए हैं। एक-दो दिन में जब ये घुल-मिल जाएंगे, तब देखना इनको उछलते-कूदते और हंसते हुए।दूसरे दिन जब पिता शाम के वक्त लौटे, तो पिंजरों को खाली देखकर हैरान हुए। उन्होंने पत्नी से पूछा, तो जवाब मिला, अपने लाडले बेटे से पूछिए। पिता ने पुत्र से पूछा, बेटे, तोते और कबूतर कहां हैं?पिता जी, मैं उन्हें पिंजरों में बंद देख नहीं सका। मैंने उन्हें उड़ा दिया है, अपनी भोली जबान में जवाब देकर बेटा बाहर आंगन में आकर आकाश में लौटते हुए पंछियों को देखने लगा।
Answered by
2
Answer:
here are ur answers in these pictures
Attachments:
Similar questions