पीके फूटे आज प्यार के, पानी बरसा री
हरियाली छा गयी, हमारे सावन सरसारी॥
बादल आये आसमान में, धरती फूली री,
अरी सुहागिन, भरी माँग में भूली-भूली री,
बिजली चमकी भाग सखी री, दादुर बोले री,
अन्ध प्राण ही बही, उड़े पंछी अनमोले री,
vyakhya kijiye
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कवि कहता है कि पानी के बरसने से प्रकृति में प्यार के अंकुर फूटने लगे हैं, चारों तरफ हरियाली छा गई है और सावन हरा भरा हो गया है, आकाश में बादल छा गए हैं और संपूर्ण पृथ्वी प्रफुल्लित हो रही है। एक सखी दूसरी सखी से कहती है कि तेरी मांग भरी हुई है और ऐसा लगता है कि इस मनोरम मौसम में तू कुछ भूली-भूली सी लगती है, आसमान में बिजली चमक रही है और बादलों को देख मेंढक भी हर्षित होकर बोलने लगे, हवा के चलने से सुंदर पक्षी भी उड़ने लगे, पक्षियों के उड़ने का दृश्य मनोरम है, मन में उमंग उठ रही है मन मानो पागल जैसा मस्त हो गया हो, पानी के बरसने से आज प्यार के अंकुर फूटने लगे हैं।
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