पाकिस्तान की राजनीति में सेना की भूमिका का वर्णन करें।
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पाकिस्तान 1956 से 1971, 1977 से 1988 तक और फिर 1999 से 2008 तक सैन्य शासन के अधीन रहा है। एक प्रेइटोरियन (अर्थात सेनाशासित प्रिय) देश के रूप में,पाकिस्तान में सेना को राजनीतिक निर्णय लेने में प्रमुख आधार के रूप में देखा जाता है, जहां असैनिक राजनीतिक संरचना को अस्थिरता, भ्रष्टाचार और अनिर्णयन से जोड़ा जाता है।तथापि, पाकिस्तान की राजनीति में पहली बार एक लोकतांत्रिक सरकार बनी जिसने लगातार दो कार्यकाल पूरे किए, लेकिन तब भी सेना पीछे से राजनीतिक निर्णय लेने की भूमिका में रहती थी। पाकिस्तान सेना अभी भी विदेश नीति बनाने में निर्णय लेने के मामले में प्रमुख भूमिका निभाती है, जो उसे समर्थन देने वाले विभिन्न खुफिया तंत्रों के साथ काम करती है।
यद्यपि किसी भी सेना से एक अनुशासित संगठन और तटस्थता बनाएरखने की अपेक्षा की जातीहै, लेकिन पाकिस्तानी सेना इस्लाम के नाम पर और राजनीतिक रूप से प्रेरित है। पाकिस्तान की सेना की खुद की आर्थिक अर्जन कार्यपद्धतियां हैं जो अपने प्रशासनिक और नौकरशाही ढांचे के भीतर लोकतांत्रिक निर्णयकर्ताओंकी शक्तियों पर नजर बनाए रखती है और साथ ही उनकी नीतियों और कार्यों के अनुसार उनकी गतिविधियों में समन्वय करती है। इस प्रकार की स्थिति पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष (सीओएएस) की भूमिका को विदेशी नीतियों के साथ-साथ घरेलू नीतियां बनाने में निर्णय लेने की प्रक्रिया में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और प्रभावशाली स्थान उपलब्ध कराती है।
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