पाकिस्तान में लोकतंत्र की जड़ें स्थाई ना होने से संबंधित कारकों का वर्णन करो ?
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14 अगस्त 1947 को एक देश के रूप में पाकिस्तान का जन्म तो हुआ लेकिन वहां लोकतंत्र कभी जवान नहीं हो सका. 66 साल के इतिहास का ज्यादातर वक्त सैन्य शासन के तले गुजरा है. चार सैन्य तानाशाहों पर तो विवाद जैसी कोई बात ही नहीं है. अन्य मामलों पर बहस हो सकती है, लेकिन इन सबके बीच इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) की सरकार कार्यकाल पूरा करने वाली पहली लोकतांत्रिक सरकार है. सरकार का कार्यकाल 16 मार्च 2013 को खत्म होगा.
2008 में पीपीपी नेता यूसुफ रजा गिलानी ने पाकिस्तान के 17वें प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली. वह पाकिस्तान के पहले ऐसे प्रधानमंत्री बने, जिन्होंने लगातार पांच बजट सत्र देखे.
गिलानी ने जब प्रधानमंत्री पद संभाला तब देश की हालत नाजुक थी. बाहर और भीतर दोनों तरफ संकट था. देश में रोजमर्रा इस्तेमाल होने वाली चीजों की कीमत आसमान छू रही थी, बिजली की दिक्कत थी, आम आदमी और अर्थव्यवस्था दोनों को खराब कानून व्यवस्था ने तंग कर रखा था. 2007 में बेनजीर भुट्टो की हत्या के बाद खुद पीपीपी अपने भीतर नेतृत्व के संकट से जूझ रही थी. बलूचिस्तान में बलोच नेता नवाब अकबर बुगती की मौत ने अलगाववादी ताकतों को मजबूत कर दिया था.
2010 तक उत्तर पश्चिमी फ्रंटियर का इलाका खैबर पख्तूनख्वा पूरी तरह आतंकवादियों के नियंत्रण में जा चुका था. ऐसे माहौल में सरकार की विश्वसनीयता ऐतिहासिक रूप से नीचे आ चुकी थी. पाकिस्तानी सेना और अन्य सुरक्षा एजेंसियां आतंकवाद से लड़ाई के नाम पर करीब करीब अपने लोगों के खिलाफ युद्ध छेड़ने के करीब आ चुकी थी.