पैकेट किया हुआ सारा प्ररुपी प्रदार्थ खाणे ही
असुविधा हो सकी
कोका-या
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सूरदास अपनी परिस्थितियों से जितना दुखी व आहत है उससे कहीं अधिक आहत है भैरों और जगधर द्वारा किए जा रहे अपमान से, उनकी ईर्ष्या से। ... उसे ईर्ष्या इस बात की थी कि सूरदास चैन से रहता है, खाता-पीता है, उसके चेहरे पर निराशा नहीं झलकती, जबकि जगधर को खाने-कमाने के लाले पडे हए हैं। भैरों की बहरिया सभागी पर जगधर नज़र भी रखता था।
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