पंक्तियों का सरल अर्थ
घन घमंड नभ गरजत घोरा । प्रिया हीन डरपत मन मोरा ।।
दामिनि दमक रहहिं घन माहीं । खल कै प्रीति जथा थिर नाही ।। बरषहिं जलद भूमि निअराऍ । जथा नवहिं बुध विद्या पाएँ । बूँद अघात सहहि गिरी कैसे । खेल के बचन संत सह जैसे ।।
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पंक्तियों का सरल अर्थ
घन घमंड नभ गरजत घोरा । प्रिया हीन डरपत मन मोरा ।।
दामिनि दमक रहहिं घन माहीं । खल कै प्रीति जथा थिर नाही ।। बरषहिं जलद भूमि निअराऍ । जथा नवहिं बुध विद्या पाएँ । बूँद अघात सहहि गिरी कैसे । खेल के बचन संत सह जैसे ।।
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- भावार्थ:-आकाश में बादल घुमड़-घुमड़कर घोर गर्जना कर रहे हैं, प्रिया (सीताजी) के बिना मेरा मन डर रहा है। बिजली की चमक बादलों में ठहरती नहीं, जैसे दुष्ट की प्रीति स्थिर नहीं रहती॥1॥ * बरषहिं जलद भूमि निअराएँ। जथा नवहिं बुध बिद्या पाएँ।
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