पंकज कोस में भंग फस्यो, करतो अपने मन यो मनसूबा।
होइगो प्रात उएँगे दिवाकर, जाउँगा धान पराग ले खूबा।।
बेनी सो बीच ही और भई नहिं काल को ध्यान न जान अजूबा।
आय गयंद चबाय लियो, रहिगो मन-ही-मन यो मनसूबा ।। 211
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तब तब याद तुम्हारी आती है
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