Hindi, asked by bishtmadhu847, 4 months ago

पाकर तुझसे सभी सुखों को हमने भोगा,
तेरा प्रत्युपकार कभी क्या हमसे होगा?
तेरी ही यह देह तुझी से बनी हुई है,
बस तेरे ही सुरस-सार से सनी हुई है,
फिर अंत समय तूही इसे अचल देख अपनाएगी।
हे मातृभूमि! यह अंत में तुझमें ही मिल जाएगी।
प्रश्न
(क) यह काव्यांश किसे संबोधित है? उससे
हम क्या पाते हैं?
(ख) प्रत्युपकार' किसे कहते हैं? देश का
प्रत्युपकार क्यों नहीं हो सकता?
(ग) शरीर-निर्माण में मात्भूमि का क्या
योगदान है?
(घ) 'अचल' विशेषण किसके लिए प्रयुक्त
हुआ है और क्यों?
(ङ) यह कैसे कह सकते हैं कि देश से हमारा
संबंध मत्यूपर्यत रहता है?​

Answers

Answered by rajinikanths864
5

Answer:

तेरा प्रत्युपकार कभी क्या हमसे होगा? तेरी ही यह देह तुझी से बनी हुई है, बस तेरे ...

Answered by shishir303
4

(क) यह काव्यांश किसे संबोधित है? उससे  हम क्या पाते हैं?

➲ ये काव्यांश मातृभूमि को संबोधित है, उससे हम सब कुछ पाते है। ये देह और जीवन के सुख सब मातृभूमि से पाते हैं।

(ख) प्रत्युपकार' किसे कहते हैं? देश का  प्रत्युपकार क्यों नहीं हो सकता?

➲ जब हम पर कोई उपकार करता है, तो उसके उपकार के बदला चुकाकर उपकार करना प्रत्युपकार कहलाता है। देश का प्रत्युपकार इसलिये नही हो सकता है, क्योंकि अपनी मातृभूमि का ऋण चुकाना बेहद कठिन है।

(ग) शरीर-निर्माण में मातृभूमि का क्या  योगदान है?

➲ शरीर-निर्माण में मातृभूमि का बेहद बड़ा योगदान होता है, ये शरीर मातृभूमि की मिट्टी से  बना होता है।

(घ) 'अचल' विशेषण किसके लिए प्रयुक्त  हुआ है और क्यों?

➲ ‘अचल’ विशेषण शरीर के लिये प्रयुक्त हुआ है।

(ङ) यह कैसे कह सकते हैं कि देश से हमारा  संबंध मृत्युपर्यत रहता है?​

➲ देश से हमारा संबंध मृत्युपर्यंत इसलिये बना रहता है, क्योंकि हम मिट्टी में जन्म लेते हैं, और अंत में इसी मिट्टी में मिल जाते हैं।

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