पुल बना भी मां
जिसमें आए दिन
दौड़ती रहती थी बेधड़क
बिना किसी हरी-लाल बत्ती के
हम लोगों को छुक छुक छक छक
पिता के बाद
हम भाइयों के बीच
पुल बनी मां
अचानक नहीं टूटी
धीर-धीरे टूटती रही
हम देखते रहे और
मानते रहे कि
बुढ़ा रही है माँ
this is the poem answer the questions in picture plzz urgent
Attachments:
Answers
Answered by
3
Explanation:
YO bro mark brainliest
Attachments:
Similar questions