प्लाज्मा का निर्माण कहां से होता है
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प्लाज्मा आमतौर पर, एक तटस्थ-गैस के बादलों का रूप ले लेता है, जैसे सितारों में। गैस की तरह प्लाज्मा का कोई निश्चित आकार या निश्चित आयतन नहीं होता जब तक इसे किसी पात्र में बंद न कर दिया जाए लेकिन गैस के विपरीत किसी चुंबकीय क्षेत्र के प्रभाव में यह एक फिलामेंट, पुंज या दोहरी परत जैसी संरचनाओं का निर्माण करता है।
साजन शर्मा, चंडीगढ़ : नकली ब्लड प्लाज्मा किसी सूरत में नहीं बन सकता। इसे केवल मानव रक्त से ही बनाया जा सकता है। बठिंडा में जो आर्टिफिशियल ब्लड प्लाज्मा रैकेट पकड़ने की बात की जा रही है, पहली नजर में बिल्कुल गलत लगती है। फ्रेश प्रोजन ब्लड प्लाज्मा केवल रक्त से ही तैयार किया जा सकता है। रक्त के 3 कंपोनेंट होते हैं, पहला आरबीसी, दूसरा प्लेटलेट्स, तीसरा ब्लड प्लाजमा। इसे तैयार करने की कोई आर्टिफिशियल विधि नहीं है। यह कहना है पीजीआइ समेत विभिन्न ब्लड सेंटरों के डॉक्टरों का, जो मामले में अपनी राय रख रहे थे। उन्होंने बताया कि ब्लड प्लाज्मा से एलबीयूमींस और ग्लोबियोमींस, क्रायोप्रेसिपिरेट जैसी दवाएं तैयार होती हैं, जिन्हें विभिन्न रोगों में प्रयोग किया जाता है। एलबीयूमींस को प्रोटीन डेफिशिएंसी ग्लोबियोलींस को इन्यून डिसऑर्डर में, जबकि क्रायोप्रेसिपिरेट को रक्त का थक्का जमाने में प्रयोग किया जाता है। इन दवाओं का निर्माण केवल और केवल इंसानी रक्त के हासिल प्लाज्मा से ही किया जा सकता है।
कंपानेंट प्लाज्मा से तैयार होती हैं कई दवाएं
इसमें से निकाले गए कंपोनेंट प्लाज्मा से विभिन्न दवा कंपनियां कई ऐसी लाइफ सेविंग ड्रग्स (दवाएं) तैयार करती हैं, जो कई रोगों में काम आती हैं। जिन लोगों को इम्यून डिसऑर्डर होते हैं उनमें प्लाज्मा से तैयार दवाओं को इन इम्यून डिसऑर्डर को दूर करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। कंपनियां ब्लड प्लाज्मा से इम्यूनो ग्लोब्यूलींस, इम्यूनो एल्बयूमींस बनाती हैं। डॉक्टरों के अनुसार ऐसा संभव नहीं कि कोई आर्टीफिशियल ब्लड प्लाज्मा तैयार कर इनसे दवाएं बनाए क्योंकि इसके बाद भी कई लेवल पर दवाओं का बाजार में उतारने से पहले चेकअप होता है। ब्लड बैंक सेंटर से लेकर ड्रग बनने तक की प्रक्रिया के दौरान कई स्तर पर जांच होती है।
प्लाज्मा से तैयार दवाओं का रोल
ब्लड बैंक में ब्लड से तीन कंपोनेंट अलग किए जाते हैं। एक रेड ब्लड सेल, दूसरा ब्लड प्लेटलेट्स और तीसरा ब्लड प्लाज्मा। तीनों कंपोनेंट की अलग अलग अहमियत होती है। एल्बयूमींस शरीर में कैल्शियम लेवल मेंटेन करने और विभिन्न न्यूट्रीएंट्स जैसे लिपिड्स हारमोंस, विटामींस, मिनरल को इंसान के ब्लड सकुर्लेटरी सिस्टम से पूरे शरीर के अंगों में पहुंचाते हैं। इससे इंसान का इम्यून सिस्टम विकसित होता है। ब्लड में 55 प्रतिशत एलब्यूमिन प्रोटीन, 38 प्रतिशत ग्लोब्यूलीन प्रोटीन, 7 प्रतिशत फाइब्रीनोजेन प्रोटीन सहित कुछ अन्य प्रोटीन शामिल होते हैं। ट्रांसफेरींस भी इसका एक मुख्य प्रोटीन होता है। कैंसर, डायबीटिज, टीबी, जले मरीजों के लिए इनसे ड्रग्स बनती हैं। ब्लड से प्लेटलेट्स भी अलग होते हैं जो एनीमिया (खून की कमी), डेंगू या मलेरिया रोग में उन मरीजों को चढ़ाए जाते हैं जिनमें इनकी कमी हो जाती है।
हमारे देश में रहती है ब्लड प्लाज्मा की कमी
दुनिया भर की बात करें तो हर साल 25 मिलियन लीटर प्लाज्मा ब्लड से बनाया जाता है। हमारे देश में हमेशा ब्लड प्लाज्मा की कमी रहती है लिहाजा हम यूएस सहित कई यूरोपियन देशों और दक्षिणी कोरिया से इसकी कमी पूरा करते हैं। चंडीगढ़, मुंबई, पुणे, दिल्ली, कोलकात्ता, चेन्नई, जयपुर और गुजरात सहित अन्य कई जगहों पर प्लाजमा जरूरत के मुताबिक नहीं बन पाता।
अब कम है कीमत
नेशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरटी (एनपीपीए) ने वर्ष 2013 में ब्लड प्लाजमा की उपलब्धता के आधार पर प्रति 100 एमएल की 1650 रुपये कीमत तय कर दी थी। पहले यह कीमत 4 हजार रुपये हुआ करती थी। प्लाजमा की कमी के दौरान मरीजों को यह दुगने रेट यानि 8 से 10 हजार प्रति 100 एमएल कीमत पर उपलब्ध होता है। केमिस्टों के पास भी इनकी पूरी उपलब्धता नहीं रहती।
स्पेशल तकनीक से अलग किए जाते हैं प्रोटीन
पीजीआइ के ट्रांसफ्यूजन मेडिसन के हेड प्रो. आरआर शर्मा की मानें तो ब्लड प्लाज्मा आर्टिफिशियल नहीं होता। कई स्पेशल तकनीकों की मदद से ब्लड प्लाज्मा से प्रोटीन अलग किए जाते हैं, जिन्हें मानव में प्रयोग के लिए इस्तेमाल किया जाता है। खासतौर से विभिन्न कंपनियां इनसे दवाएं बनाती हैं जो कई प्रकार के रोगों में काम आती हैं। अगर कोई अनैतिक ढंग से इन्हें बनाने की कोशिश कर रहा है तो इसका कड़ा नोटिस लिया जाना चाहिए। प्लाज्मा से अलग किए एलब्यूमींस या फैक्टर 8 को हीमोफीलिया के मरीजों में प्रयोग किया जाता है।