Hindi, asked by kolhelaxmikant8, 9 months ago

प्लास्टिक की आत्मकथा हिंदी में​

Answers

Answered by Anonymous
1

Explanation:

आज मेरी क्या अवस्था हो गयी हैं की आज हर स्थान पर मेरा बहिष्कार हो रहा है। एक वक़्त पर मैं हर किसी की ज़रूरत थी मगर आज हर कोई मुझ से नफ़रत करता है।

मैं पूछती हूं की मेरा क़सूर क्या है यही की मैं कभी मर नहीं सकती। मैं पर्यावरण को हानि पहुंचाती हूं।

मगर मैं लोगों के काम भी तो आती हूं ये क्यों नही दिखता किसी को।

जहां देखो वहां मुझे बंद कर दिया है। उपयोग करते वक़्त ये ख्याल नही आया की मैं प्रकृति को हानि पहुचा सकती हूं ।

मगर आज इतने वर्षों के बाद तुम सबकी आखें खुली की मैं उपयोगी नही हूं हानिकारक हूं।

अब मैं कहा जाऊ किसको अपने आसूं दिखाऊं किसको अपने दुख दिखाऊ।

इसलिए मेरी आत्मकथा ही पढ़ा रही हूं।

good bye mark me hi oke bis hm into bye

Answered by rajekhanpathan966
0

Answer:

मैं पुस्तक हूँ । जिस रूप में आपको आज दिखाई देती हूं प्राचीन काल में मेरा यह स्वरूप नही था । गुरु शिष्य को मौखिक ज्ञान देते थे । उस समय तक कागज का आविष्कार ही नहीं हुआ था । शिष्य सुनकर ज्ञान ग्रहण करते थे ।

धीरे-धीरे इस कार्य में कठिनाई उत्पन्न होने लगी । ज्ञान को सुरक्षित रखने के लिए उसे लिपिबद्ध करना आवश्यक हो गया । तब ऋषियों ने भोजपत्र पर लिखना आरम्भ किया । यह कागज का प्रथम स्वरूप था ।

भोजपत्र आज भी देखने को मिलते हैं । हमारी अति प्राचीन साहित्य भोजपत्रों और ताड़तत्रों पर ही लिखा मिलता है ।

मुझे कागज का रूप देने के लिए घास-फूस, बांस के टुकड़े, पुराने कपड़े के चीथड़े को कूट पीस कर गलाया जाता है उसकी लुगदी तैयार करके मुझे मशीनों ने नीचे दबाया जाता है, तब मैं कागज के रूप में आपके सामने आती हूँ ।

मेरा स्वरूप तैयार हो जाने पर मुझे लेखक के पास लिखने के लिए भेजा जाता है । वहाँ मैं प्रकाशक के पास और फिर प्रेस में जाती हूँ । प्रेस में मुश् छापेखाने की मशीनों में भेजा जाता है । छापेखाने से निकलकर में जिल्द बनाने वाले के हाथों में जाती हूँ ।

वहाँ मुझे काटकर, सुइयों से छेद करके मुझे सिला जाता है । तब मेर पूर्ण स्वरूप बनता है । उसके बाद प्रकाशक मुझे उठाकर अपनी दुकान पर ल जाता है और छोटे बड़े पुस्तक विक्रेताओं के हाथों में बेंच दिया जाता है ।

मैं केवल एक ही विषय के नहीं लिखी जाती हूँ अपितु मेरा क्षेत्र विस्तृत है । वर्तमान युग में तो मेरी बहुत ही मांग है । मुझे नाटक, कहानी, भूगोल, इतिहास, गणित, अंग्रेजी, अर्थशास्त्र, साइंस आदि के रूप में देखा जा सकता है ।

Similar questions