प्लास्टिक कचरा शहरी जीवन शैली का एक उप-उत्पाद है और इसे एक आवश्यक बुराई माना
जाता है। इस कथन पर अपने आलोचनात्मक विचार प्रदान करें, शहरी जीवनशैली की वृद्धि में
प्लास्टिक की उपयोगिता पर ध्यान केंद्रित करें और 1000 शब्दों में पर्यावरण (मानव सहित) पर
प्लास्टिक कचरे के प्रभाव बताए।
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भारत में प्रत्येक दिन 9205 टन प्लास्टिक का कचरा जमा होता है और रि-साइकिल किया जाता है। वहीं पर 6137 टन ऐसा प्लास्टिक कचरा होता है, जो हमारी धरती, नदी, नालों और पर्वतों पर ही पड़ा रह जाता है। प्लास्टिक के इस कचरे के लिए प्रमुख उत्तरदायी चार बड़े महानगर- दिल्ली (689.5 टन प्रतिदिन), चेन्नई (429.4 टन), कोलकाता (425.7 टन) और मुंबई (408.3 टन) हैं। संपूर्ण भारत देश हर वर्ष 56 लाख टन प्लास्टिक का कचरा पैदा करने की शर्मनाक क्षमता रखता है और इसमें से लगभग आधा प्लास्टिक का कूड़ा ठीक से इकट्ठा भी नहीं हो पाता है। इसके परिणामस्वरूप हमारी नदियां, पर्यावरण और परिस्थितिकीय तंत्र दिनों दिन गंभीर रूप से विषाक्त होता जा रहा है। वास्तव में प्लास्टिक कचरे से अकेला भारत ही पीड़ित नहीं है, वरन यह एक वैश्विक समस्या है। ‘संयुक्त राष्ट्र’ के आंकड़ें इसकी विभिषिका को बयान करते हैं। आज संपूर्ण विश्व प्रतिवर्ष दस खरब प्लास्टिक बैग इस्तेमाल कर बाहर फेंक देता है, इसका अर्थ हुआ दस लाख प्लास्टिक बैग प्रत्येक मिनट प्रयोग कर कचरे के रूप में फेंक दिए जाते हैं। स्पष्ट है कि इसका अधिकांश हिस्सा न तो रि-साइकिल ही होता है और न ही किसी अन्य रूप से इकट्ठा कर प्रयोग ही किया जा सकता है।
प्रश्न यह है कि अब इस कचरे का वह भाग जो जमा नहीं होता, अंततः कहां जाता है ? दरअसल यह कचरा हमारी धरती में धंस रहा है, वहां यह सैंकड़ों वर्षों तक बिना नष्ट हुए पड़ा रहेगा और इस धरती पर पनप रहे अमूल्य एवं दुर्लभ पशु-पक्षियों, मनुष्यों और वनस्पतियों का गला घोंटता रहेगा। इसका अधिकतर भाग नदी-नालों से होता हुआ हमारे महासागरों में चला जाता है। वास्तव में यह सब पिछले कई दशकों से हो रहा है और यह सारा कचरा महासागरों के ‘गायरों’ में जाकर जमा होता जा रहा है। महासागरों की स्थिति भी इस प्रदूषण के चलते बहुत विस्फोटक और विनाशकारी होती जा रही है। संभवतः अधिकांश वैश्विक जगत और आधुनिक मानव समाज को यह एहसास ही नहीं है कि यह संपूर्ण सभ्यता ही पर्यावरण प्रदूषण रूपी ज्वालामुखी के मुहाने पर बैठी हुई है।
फल, सब्जियां, बच्चों के दूध पीने की बोतलें, पानी की बोतलें, कोल्ड ड्रिंक की बोतलें व अन्य खाद्य पदार्थ पूरी तरह प्लास्टिक पर निर्भर हैं। समय के साथ-साथ इन प्लास्टिक की वस्तुओं से बिसफिनोल रिसने लगता है और इन पदार्थों में मिलकर हमारे शरीर में पहुंचता है। प्लास्टिक की हमारे शरीर में होने वाली उपस्थिति कई पीढ़ियों तक अपना कुप्रभाव फैलाने में सक्षम है। प्लास्टिक कचरा आज विश्व के समक्ष परमाणु अस्त्रों के प्रयोग से भी कहीं अधिक बड़ा खतरा है।
गायर क्या होता है ?
‘गायर’ हवा और पानी से बने ऐसे प्राकृतिक भंवर हैं, जो उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों की दिशा में घूमते हैं और दक्षिण गोलार्द्ध में इससे विपरीत दिशा में। इन भंवरों की गति अपने मध्य से धीमी हो जाती है और यही वह स्थान है, जहां हमारा सारा प्लास्टिक एकत्र हो रहा है। हमारे वैश्विक महासागरों में कुल पांच गायर हैं और इनमें सबसे बड़ा गायर है - ‘ग्रेट पैसिफिक’ कचरा क्षेत्र। इस गायर का क्षेत्र कुल 14 लाख किलोमीटर है और ये संपूर्ण विश्व द्वारा फेंके गए प्लास्टिक कचरे के एकत्रीकरण का सबसे बड़ा केंद्र है। आज हमारे महासागरों में कुल 50 लाख वर्ग मील की सतह पर प्लास्टिक का कचरा तैर रहा है। यह एक विस्फोटक स्थिति है, जो निरंतर बदतर होती जा रही है।
प्लास्टिक कचरे के दुष्परिणाम
वास्तव में प्लास्टिक कचरा बेहद जटिल होता है और यह कभी भी नष्ट नहीं होता। इस विनष्ट न होने वाले घातक कचरे के कारण लगभग एक लाख से अधिक दुर्लभ समुद्री जीव प्रतिवर्ष मारे जाते हैं और 10 लाख से अधिक समुद्री पक्षी अपनी जान गंवा देते हैं। हमारे महानगरों में प्रत्येक वर्ग मील में कुल 46 हजार से अधिक प्लास्टिक बैग हर समय तैर रहे होते हैं। जिस प्लास्टिक के कचरे को री-साइकिल किया जाता है, उसमें हजारों रुपए प्रति टन खर्च आता है, जो उसकी वास्तविक कीमत से बहुत ज्यादा है। इसलिए जो कचरा रीसाइकिल होता भी है, उसका कोई बड़ा लाभ पर्यावरण को प्राप्त नहीं होता है। यह गायर मात्र महानगरों में ही नहीं बल्कि हमारे शरीर में प्रवेश कर चुके हैं 'अमेरिकी फेडरल प्रशासन' के अध्ययन के अनुसार बिसफेनोल, जिससे प्लास्टिक बनता है प्रत्येक बच्चे, युवा, वृद्धि के शरीर में पाया जाता है
आज हमारे फल, सब्जियां, बच्चों के दूध पीने की बोतलें, पानी की बोतलें, कोल्ड ड्रिंक की बोतलें व अन्य खाद्य पदार्थ पूरी तरह प्लास्टिक पर निर्भर हैं। समय के साथ-साथ इन प्लास्टिक की वस्तुओं से बिसफिनोल रिसने लगता है और इन पदार्थों में मिलकर हमारे शरीर में पहुंचता है। प्लास्टिक की हमारे शरीर में होने वाली उपस्थिति कई पीढ़ियों तक अपना कुप्रभाव फैलाने में सक्षम है। प्लास्टिक कचरा आज विश्व के समक्ष परमाणु अस्त्रों के प्रयोग से भी कहीं अधिक बड़ा खतरा है। यह एक विकट समस्या है हम में से प्रत्येक को यह उत्तरदायित्व निभाना होगा कि जहां तक हो सके प्लास्टिक का उपयोग ना करें, प्लास्टिक का कचरा ना फैलाने दे। पर्यावरण के लिए बेहद नुकसानदेह प्लास्टिक थैलियों पर रोक लगाने के लिए कानून तो पहले भी बनाए गए हैं, लेकिन इस पर अमल नहीं हो पा रहा है। प्रत्येक नागरिक को प्लास्टिक के दुरुपयोग से होने वाले खतरों से आगाह किया जाना चाहिए। यह भी आवश्यक है कि प्लास्टिक के उत्पादों पर तत्काल प्रभाव से पूर्णता प्रतिबंध लगा दिया जाए।
जागरूकता की कमी
बढ़ती जनसंख्या और नियोजित एवं अदूरदर्शी औद्योगिक विकास के चलते पूरा देश कचरे का ढेर बनता जा रहा है। कहीं कोई योजना नहीं है। देश के नागरिकों में ना ही इस संदर्भ में आवश्यक जागरूकता ही है और ना ही कोई सजग और सतर्क प्रशासनिक तंत्र। शहरों से प्रतिदिन निकलने वाला हजारों टन कचरा धरती के लिए खतरा बनता जा रहा है। सड़क किनारे सर्वत्र बिखरा कूड़ा पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है। इससे निकलने वाला धुआं न सिर्फ पर्यावरण बल्कि लोगों के लिए भी खतरा बन रहा है।