Hindi, asked by mitkutparsad65paidjl, 1 year ago

प्लास्टिक धरती का वरदान नहीं अपितु अभिशाप है निबंध। (250 Words )​

Answers

Answered by garvitPandey29th
15

आधुनिक समाज में प्लास्टिक मानव-शत्रु के रूप में उभर रहा है। समाज में फैले आतंकवाद से तो छुटकारा पाया जा सकता है, किंतु प्लास्टिक से छुटकारा पाना अत्यंत कठिन है, क्योंकि आज यह हमारे दैनिक उपयोग की वस्तु बन गया है। गृहोपयोगी वस्तुओं से लेकर कृषि, चिकित्सा, भवन-निर्माण, विज्ञान सेना, शिक्षा, मनोरंजन, अंतरिक्ष, अंतरिक्ष कार्यक्रमों और सूचना प्रौद्योगिकी आदि में प्लास्टिक का उपयोग हो रहा है।

प्लास्टिक एक ग्रीक शब्द प्लास्टीकोस से बना है, जिसका सीधा तात्पर्य है आसानो से नमनीय पदार्थ जो किसी आकार में ढाला जा सके। 1970 के दशक में इसका उपयोग औद्योगिक तथा घरेलू क्षेत्र में अप्रत्याशित रूप से बढ़ा। सस्ता, हल्का, ताप-विद्युत, कंपन-शोर प्रतिरोधी तथा कम जगह घेरने वाला पदार्थ होने के कारण औद्योगिक कार्यों में धातुओं की जगह इसने ले ली। साथ ही, वाहन, इलेक्ट्रॉनिक्स, दूरसंचार, कृषि उपकरण तथा अन्यान्य आवश्यक कार्यों में भी प्लास्टिक को प्रतिनिधित्व मिला। विश्व में औसतन प्लास्टिक की खपत 15 किलो/ प्रतिव्यक्ति की तुलना में भारत में यह खपत लगभग प्रति व्यक्ति लगभग 1 किलो है। इस तरह विश्व की तुलना में यह खपत भारत में प्रतिवर्ष 10 प्रतिशत है। इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट जिसमें EPOXY,प्रिंटेड सर्किट बोर्ड, चप्पल, टी.वी., कैबिनेट, टेपरिकॉर्डर के गियरबॉक्स, प्रकाश करने वाले स्रोत, बटन इत्यादि शामिल हैं। भारत में प्रतिवर्ष करीब 700 टन निकलता है, जबकि ऐसे प्लास्टिक अपशिष्ट की मात्रा विश्व में 7000 टन है।

अपनी विविध विशेषताओं के कारण प्लास्टिक आधुनिक युग का अत्यंत महत्वपूर्ण पदार्थ बन गया है। टिकाऊपन, मनभावन रंगों में उपलब्धता और विविध आकार-प्रकारों में मिलने के कारण प्लास्टिक का प्रयोग आज जीवन के हर क्षेत्र में हो रहा है। बाजार में खरीदारी के लिए रंग-बिरंगें कैरी बैग से लेकर रसोईघर के बर्तन, कृषि के उपकरण, परिवहन वाहन, जल-वितरण, भवन, रक्षा उपकरण एवं इलेक्ट्रॉनिक्स सहित अनेक क्षेत्रों में आज प्लास्टिक का बोलबाला है। यही नहीं वैज्ञानिकों ने मनुष्य का जो कृत्रिम हृदय बनाया है, वह भी प्लास्टिक से ही बनाया गया है।

तमाम खूबियों वाला यही प्लास्टिक जब उपयोग के बाद फेंक दिया जाता है तो यह अन्य कचरों की तरह आसानी के नष्ट नहीं होता। एक लंबे समय तक अपघटित न होने के कारण यह लगातार एकत्रित होता जाता है और अनेक समस्याओं को जन्म देता है। जिन देशों में जितना अधिक प्लास्टिक का उपयोग होता है, वहां समस्या उतनी ही जटिल है। चिंता की बात तो यह है कि प्लास्टिक का उपयोग लगातार बढ़ता जा रहा है। जबकि पिछले वर्षों में जो प्लास्टिक कचरे में फेंका गया, वह ज्यों-का-त्यों धरती पर यत्र-तत्र बिखरकर प्रदूषण फैला रहा है। भारत में अभी भी प्लास्टिक का उपयोग विकसित देशों की अपेक्षा काफी कम है, लेकिन इसका प्रयोग तेजी से बढ़ रहा है। सन् 2001-02 में भारत में प्लास्टिक की मांग 4.3 मिलटन थी, जो प्रतिवर्ष बढ़ने की संभावना है। वर्तमान में भारत में प्लास्टिक का बाजार 25,000 करोड़ रुपए है। एक सर्वेक्षण में पाया गया है कि हमारे देश के शहरों के कूड़े में 10 प्रतिशत प्लास्टिक की वस्तुएं, 5 प्रतिशत रेशे के टुकड़े होते हैं प्लास्टिक की वस्तुओं में अनेक टूटे-फूटे बर्तन एवं घरेलू उपकरण होते हैं। कुछ दशकों पूर्व तक शहरों से निकलने वाले कूड़े में प्लास्टिक बहुत कम होता था। कूड़े में अधिकांश कार्बनिक पदार्थ ही हुआ करते थे, जो जल्दी ही नष्ट हो जाते थे या खाद के रूप में बदल जाते थे।

प्लास्टिक मुख्यतः पैट्रोलियम पदार्थों से निकलने वाले कृत्रिम रेजिन से बनाया जाता है। रेजिन में अमोनिया एवं बेंजीन को मिलाकर प्लास्टिक के मोनोमर बनाए जाते हैं। इसमें क्लोरीन, फ्लुओरिन, कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन एवं सल्फर के अणु होते हैं। लंबे समय तक अपघटित न होने के अलावा भी प्लास्टिक अनेक अन्य प्रभाव छोड़ता है, जो मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। उदाहरणस्वरूप पाइपों, खिड़कियों और दरवाजों के निर्माण में प्रयुक्त पी.वी.सी. प्लास्टिक विनाइल क्लोराइड के बहुलकीकरण सें बनाया जाता है। रसायन मस्तिष्क एवं यकृत में कैंसर पैदा कर सकता है। मशीनों की पैकिंग बनाने के लिए अत्यंत कठोर पॉलीकार्बोंनेट प्लास्टिक फॉस्जीन बिसफीनॉल यौगिकों के बहुलीकरण से प्राप्त किए जाते हैं। इनमें एक अवयव फॉस्जीन अत्यंत विषैली व दमघोटू गैस है। फार्मेल्डीहाइड अनेक प्रकार के प्लास्टिक के निर्माण में प्रयुक्त होता है। यह रसायन त्वचा पर दाने उत्पन्न कर सकता है। कई दिनों तक इसके संपर्क में बने रहने से दमा तथा सांस संबंधी बीमारियां हो सकती हैं। प्लास्टिक में लचीलापन पैदा करने के लिए प्लास्टिक-साइजर वर्ग के कार्बनिक यौगिक मिलाए जाते हैं। थैलट, एसीसेट, इस्टर तथा कई प्रकार के पॉलिथीलीन ग्यायकान यौगिक कैंसरकारी होते हैं। प्लास्टिक में मिले हुए ये जहरीले पदार्थ प्लास्टिक के निर्माण के समय प्रयोग किए जाते हैं। तैयार (ठोस) प्लास्टिक के बर्तनों में यदि लंबे समय तक खाद्य सामग्री रखी रहे या शरीर की त्वचा लंबे समय तक प्लास्टिक के संपर्क में रहे तो प्लास्टिक के जहरीले रसायनों का असर हो सकता है। इसी प्रकार जो प्लास्टिक कचरे में फेंक दिया जाता है, उसका कचरे में लंबे समय तक पड़ा रहना वातावरण में अनेक विषैले प्रभाव छोड़ सकता है।

प्लास्टिक कचरे को ठिकाने लगाने के लिए अब तक तीन उपाय अपनाए जाते रहे हैं। आमतौर पर प्लास्टिक के न सड़ने की प्रवृति को देखते हुए इसे गड्ढों में भर दिया जाता है। दूसरे उपाय के रूप में इसे जलाया जाता है, लेकिन यह तरीका बहुत प्रदूषणकारी है। प्लास्टिक जलाने से आमतौर पर कार्बन डाइऑक्साइड गैस नकलती है। उदाहरणस्वरूप, पॉलिस्टीरीन प्लास्टिक को जलाने पर कलोरो-फ्लोरो कार्बन निकलते हैं, जो वायमुंडल की ओजोन परत के लिए नुकसानदायक हैं।


mitkutparsad65paidjl: Where you have copied it
garvitPandey29th: are you going mad
mitkutparsad65paidjl: why
garvitPandey29th: I am not copied it
mitkutparsad65paidjl: your sir or mam tells you
mitkutparsad65paidjl: sorry
mitkutparsad65paidjl: Sorry
garvitPandey29th: actually I had done this by my own
garvitPandey29th: it's okay mukti
garvitPandey29th: can you mark me as brainliest
Answered by ashi74056
0

thank you garvitPandey29th

Similar questions