पॉलिथीन कैसे जलती है और उसकी गंद कैसी होती है
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। जनता और सफाई कर्मचारियों की लापरवाही जिले की हवा को खराब कर रही है। कूड़े में जलने वाली पॉलिथीन हवा को जहरीला भी करती है। खेती वाले जिले में हवा की गुणवत्ता को खराब करने में सबसे ज्यादा बट्टा ब्लॉक व नगर पालिकाओं की वजह से ही लगता है।
वैसे तो जिले की आबो-हवा की साफ है। हवा की गुणवत्ता को धुल व धुएं के कणों के आधार पर एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) में मापा जाता है। जिले में हवा की गुणवत्ता सामान्य तौर पर 65 तक रहती है। इससे साफ हवा पहाड़ी शहरों की ही रहती है। वर्तमान में भी जिले का एक्यूआई 91 है। जिले की हवा साफ है लेकिन इसे साफ रखना एक बड़ी चुनौती है। जिले में नगर पालिकाएं और ग्राम पंचायतों का कूड़ा सड़क पर डाल दिया जाता है। सफाई कर्मचारी इस कूड़े में आग लगा देते हैं। आग लगने से कूड़े से निकलने वाला धुआं हवा को प्रदूषित करता है। कूड़े में सबसे ज्यादा पॉलिथीन ही जलती है। इसके अलावा किसान भी खेतों में फसलों के अवशेष भी जलाते हैं। हालांकि किसान गन्ने के सीजन में साल में एक दो बार ही फसलों के अवशेष जलाते हैं लेकिन कूड़ों में तो आग रोज ही लगाई जाती है। पॉलिथीन और प्लास्टिक जलाने से पर्यावरण को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचता है। लेकिन बिजनौर में कूड़ा निस्तारण के प्रति अधिकारियों का ध्यान ही नहीं है।
इनसेट
प्लास्टिक से नुकसान
हवा में : चाहे आम नागरिक हो या फिर व्यापारी या सफाई कर्मचारी प्लास्टिक/पॉलिथीन को जला देते हैं। प्लास्टिक को जलाने से स्टाईरिन गैस निकलती है। गर्भवती महिलाओं की त्वचा इस गैस को सोख लेती है। सांस के जरिए यह गैस गर्भ में पल रहे बच्चे के अंदर चली जाती है और बच्चे के दिमाग व स्वास्थ्य पर बुरा असर डालती है। यह गैस कैंसर का भी कारण बन जाती है।
जमीन में : प्लास्टिक जमीन में गलने में 100 से 300 साल तक का समय लेती है। इससे जमीन की उर्वरक क्षमता घटती है। जिस जमीन में प्लास्टिक अधिक मात्रा में होती है, उसकी पानी सोखने की क्षमता बहुत कम हो जाती है। उस जमीन पर खेती नहीं की जा सकती।
जल में : लोग अज्ञानतावश अक्सर नदियों में पॉलीथिन में खाद्य पदार्थ बांधकर डाल देते हैं। जलीय जीव खाद्य पदार्थों के साथ साथ पॉलीथिन को भी खा जाते हैं। इससे उनकी मौत भी हो जाती है। इससे नदी का जीवन चक्र बिगड़ जाता है
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