Social Sciences, asked by akashrajyoyo24, 3 months ago

पालमपुर की छोटी किसान पूंजी की व्यवस्था के लिए किन पर निर्भर है​

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Answered by vivekbt42kvboy
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Answer:

Explanation:इस शोध पत्र में भारत के छोटे एवं सीमांत किसानों द्वारा सामना की जा रही उन विभिन्न बाधाओं को तीखी नजर से परखा गया हैजो उनकी भूमि की उत्पादकता और इस तरह उनकी आय को भी बुरी तरह प्रभावित कर रही हैं। खेती–बाड़ी से जुड़ी तमाम गतिविधियों को इन बाधाओं से दो–चार होना पड़ रहा है, जिनमें उत्पादन से लेकर भंडारण एवं बाजारों तक पहुंच सभी शामिल हैं। हाल ही में कराए गए एक सरकारी सर्वेक्षण से यह निष्कर्ष उभर कर सामने आया है कि देश के हर दस किसानों में से चार किसान खेती को नापसंद करते हैं और यदि उन्हें कोई विकल्प दे दिया जाए तो वे इसे छोड़कर किसी और पेशे को अपनाना पसंद करेंगे। वैसे तो सरकार ने कृषि क्षेत्र में सुधारों की एक श्रृंखला जैसे कि ‘ई–नाम’और ‘कृषि यंत्रीकरण योजना’ शुरू की है , लेकिन इन कार्यक्रमों के लाभ ज्यादातर बड़े किसानों के ही खाते में चले गए हैं। इस शोध पत्र में उन विकट समस्याओं से निजात पाने के लिए विशिष्ट सिफारिशें की गई हैं जिनके कारण देश में किसी तरह से गुजर–बसर कर रहे किसानों को घोर दरिद्रता का सामना करना पड़ रहा है।

परिचय

भारत में ज्यादातर किसान छोटे और सीमांत हैं, जिन्हें अक्सर एक हेक्टेयर से भी कम अथवा महज एक से लेकर दो हेक्टेयर तक की कृषि जोत पर ही अपना पसीना बहाने पर विवश होना पड़ता है। भारत में जितने भी ग्रामीण परिवार हैं उनका लगभग 57.8 प्रतिशत कृषि क्षेत्र के भरोसे ही अपना जीवन यापन कर रहा है। इनमें से 69 प्रतिशत से भी अधिक परिवारों के पास या तो मामूली कृषि जोत हैं या उन्हीं पर अपना सारा पसीना बहाकर इन परिवारों को किसी तरह अपना जीवन गुजर-बसर करना पड़ता है। वहीं, दूसरी ओर 17.1 प्रतिशत परिवारों को छोटी कृषि जोत के भरोसे ही अपना काम चलाना पड़ रहा है। भारत के [i] लगभग 72.3 प्रतिशत [ii] ग्रामीण परिवार कृषि क्षेत्र में या तो किसान या कृषि मजदूरों के रूप में काम करते हैं। वर्ष 2011 की नवीनतम जनगणना से यह निष्कर्ष उभर कर सामने आया है। हालांकि, कृषि क्षेत्र में कार्यरत किसानों का अनुपात वर्ष 1951 के 71.9 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2011 में 45.1 प्रतिशत के स्तसर पर आ गया, [iii] जो कम उत्पादकता की वजह से इस हद तक घट गया। जहां तक कम उत्पादकता का सवाल है, यह प्रतिकूल मौसम सहित विभिन्न कारकों का नतीजा है। कृषि क्षेत्र में विकास के अभाव ने ग्रामीण आबादी को गैर-कृषि क्षेत्र की ओर अग्रसर होने पर विवश कर दिया है जिसके परिणामस्वररूप वर्ष 1999-2000 और वर्ष 2011-2012 के बीच गैर-कृषि ग्रामीण रोजगार लगभग 12 प्रतिशत बढ़ गया। [iv] दरअसल, गैर-कृषि क्षेत्र उन लोगों के लिए ‘बचत’ वाले क्षेत्र के रूप में उभर कर सामने आया है जो कृषि को जोखिम भरा मानते हैं और जिसमें मेहनताना के लिए मोहताज होना पड़ता है।

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