पालतू जानवर की आत्मकथा
abhinavlohkare:
answer the que
Answers
Answered by
18
मैं गाय हूँ। यही मेरा नाम है। इन्सान और इंसानियत से ज़्यादा ही पुराना है मेरा अतीत। क़ुदरत ने मुझे प्राणिजगत में जगह दी। फिर मैं जन्तु साम्राज्य में रीढ़धारी, स्तनधारी, शाकाहारी चौपाया के परिवार का सदस्य बनी। मनुष्य को मैंने उस युग से देखा है जब वो आदि मानव था। जंगल में नंग-धड़ंग घूमता था। छोटा-मोटा शिकार करके अपना पेट भरता था। कालान्तर में जैसे-जैसे मनुष्य की बुद्धि विकसित हुई, उसने औज़ार बनाये, खेती-बाड़ी सीखी और परिवार-समाज की रचना की। जैसे-जैसे इंसान समझदार बना, उसे मेरी शराफ़त और सज्जनता ने आकर्षित किया। उसने मेरे शील-स्वभाव को पहचाना। मुझे साथ रहने के लिए अपने-अपने घरों में ले गया। मैं भी सीधी-साधी थी। चल दी उसके साथ। जंगल में खाने-पीने की तो कोई दिक़्क़त थी नहीं। लेकिन शिकारी जानवरों से ख़ुद को और अपने क़ुनबे को बचाना, मेरे लिए हमेशा बहुत मुश्किल था। इसीलिए मुझे लगा कि इंसान के साथ मेरी निभ जाएगी। इस तरह मैं जानवर से पालतू पशु बन गयी।
इंसान मुझे भोजन और संरक्षण देता। बदले में मैं उसे दूध, बैल, साँढ़ और गोबर देती। ऋग्वैदिक काल (6000 ईसा पूर्व) तक आते-आते मेरा गौवंश इंसान की अर्थव्यवस्था की धुरी बन चुका था। मानव के लिए मैं समृद्धि का प्रतीक थी। ऋग्वैदिक काल में मौजूदा अफ़ग़ानिस्तान से लेकर पंजाब तक बसे लोग आर्य कहलाये। आर्य प्राकृतिक शक्तियों जैसे इन्द्र, वरूण, अग्नि आदि की ही पूजा करते थे। क्रमागत देवताओं ब्रह्मा-विष्णु-महेश का अभ्युदय तब तक नहीं हुआ था। कर्मकांडों की प्रमुखता नहीं थी। कबीलाई शासन था। सैनिक भावना प्रमुख थी। राजा वंशानुगत तो होता था। लेकिन जनता उसे हटा सकती थी। वह क्षेत्र विशेष का नहीं बल्कि जन विशेष का प्रधान होता था। राजा युद्ध का नेतृत्व करता था। उसे कर वसूलने का अधिकार नहीं था। जनता ने जो स्वेच्छा से दिया, उसी से उसका खर्च चलता था। कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था थी। पितृसत्तात्मक समाज था। संयुक्त परिवार और वर्णाश्रम (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा संन्यास) की प्रथा मनुष्य विकसित कर चुका था।
इंसान मुझे भोजन और संरक्षण देता। बदले में मैं उसे दूध, बैल, साँढ़ और गोबर देती। ऋग्वैदिक काल (6000 ईसा पूर्व) तक आते-आते मेरा गौवंश इंसान की अर्थव्यवस्था की धुरी बन चुका था। मानव के लिए मैं समृद्धि का प्रतीक थी। ऋग्वैदिक काल में मौजूदा अफ़ग़ानिस्तान से लेकर पंजाब तक बसे लोग आर्य कहलाये। आर्य प्राकृतिक शक्तियों जैसे इन्द्र, वरूण, अग्नि आदि की ही पूजा करते थे। क्रमागत देवताओं ब्रह्मा-विष्णु-महेश का अभ्युदय तब तक नहीं हुआ था। कर्मकांडों की प्रमुखता नहीं थी। कबीलाई शासन था। सैनिक भावना प्रमुख थी। राजा वंशानुगत तो होता था। लेकिन जनता उसे हटा सकती थी। वह क्षेत्र विशेष का नहीं बल्कि जन विशेष का प्रधान होता था। राजा युद्ध का नेतृत्व करता था। उसे कर वसूलने का अधिकार नहीं था। जनता ने जो स्वेच्छा से दिया, उसी से उसका खर्च चलता था। कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था थी। पितृसत्तात्मक समाज था। संयुक्त परिवार और वर्णाश्रम (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा संन्यास) की प्रथा मनुष्य विकसित कर चुका था।
Similar questions